प्रयागराज। मोबाइल और इंटरनेट ने एक ओर जहां लोगों का काम आसान किया है, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग इसके लती भी हो रहे है। बच्चों के सभी आयु के महिलाएं और पुरुषों पर मोबाइल का नशा सिर चढ़कर बोल रहा है। मोबाइल पर गेम खेलने के साथ ही चैटिंग, फोटो अपडेट करने और कमेंट करने सहित इसी तरह के कामों में लोगों के गहराते रूझान से से हेल्थ संकट भी गहराता जा रहा है। चिडचिड़ेपन और बेचैनी तथा इसी तरह की अन्य समस्याओं से पीडित लोगों की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए मोतीलाल नेहरु मंडलीय अस्पताल में प्रदेश के पहले मोबाइल नशा मुक्ति केन्द्र की शुरुआत हुई है।
लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर
मोबाइल और इंटरनेट हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। मोबाइल के बिना अब जीवन अधूरा सा लगता है। लेकिन विज्ञान की यह तकनीक लोगों को नुकसान भी पहुंचा रही है। बच्चों से लेकर किशोर और युवा जहां मोबाइल के लती हो रहे हैं, वहीं पबजी जैसे खतरनाक गेम के जरिए अवसाद में जाकर आत्महत्या तक कर रहे हैं। इसके साथ ही कई वयस्क और महिलायें भी अकेलेपन का शिकार होकर मोबाइल के लती हो रही हैं। जो लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है।
माता-पिता ही जिम्मेदार
बच्चों के मोबाइल के लती होने में ज्यादातर माता-पिता ही जिम्मेदार होते हैं। दरअसल घर में अकेली महिलायें कई बार बच्चों के हाथों में मोबाइल पकड़ाकर घर के कामों में लग जाती है। जिससे बच्चे काफी देर तक मोबाइल में बिजी रहते हैं और वे उसके आदी हो जाते हैं। अभिभावक भी अपनी गलती स्वीकार कतरे हैं, लेकिन इसके पीछे अपनी मजबूरियां भी बताते हैं। अभिभावकों का ये भी तर्क है कि मोबाइल से बच्चों को कई जानकारियां भी मिलती है। जैसे उन्हें कवितायें और गीत मोबाइल देखकर ही याद हो जाते हैं। वहीं शिक्षक बच्चों में मोबाइल को लेकर बदलते व्यवहार को लेकर चितिंत नजर आ रहे हैं और अभिभावकों को भी सजग रहने की सलाह दे रहे हैं।
थेरेपी व योग भी बताया जाएगा
मोबाइल की बच्चों और युवाओं में बढ़ती लत की समस्या को देखते हुए शाहगंज थाना क्षेत्र स्थित मोती लाल नेहरु मंडलीय अस्पताल में मोबाइल नशा मुक्ति केन्द्र की शुरुआत हुई है। जिसमें मोबाइल और इंटरनेट की लत छुड़ाने के लिए खास ओपीडी शुरू हुई है। इसमें मरीजों की काउंसिलिंग के साथ उन्हें जरूरत पडऩे पर दवायें भी उपलब्ध कराई जाएगी। इसके साथ ही कुछ खास थेरेपी व योग भी बताया जाएगा। मोबाइल व इंटरनेट का प्रयोग बच्चो से लेकर बड़े तक कर रहे हैं। हाल यह है कि अब चार से पांच साल तक के बच्चे भी मोबाइल में गेम व कार्टून देखे बिना नहीं रह पा रहे हैं। घर वालों के कहने पर भी बच्चे मोबाइल में गेम खेलने ले बाज नही आ रहे हंै।
डिप्रेशन के शिकार
मनोचिकित्सकों के मुताबिक यह लत उनके मानसिक विकास के लिए घातक साबित हो सकती है। वहीं मोबाइल के आदी हो चुके लोग बड़े तेजी से डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे है। इस समस्या के समाधान के लिए ही काल्विन अस्पताल में सप्ताह में तीन दिन खास ओपीडी शुरू हुई है। प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वीके सिंह के नेतृत्व मे राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम के नोडल अफसर डॉ राकेश पासवान की ओर से सफ्ताह मे तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुकवार को ओपीडी चलेगी।