लखनऊ। केजीएमयू प्रशासन पर एक ही कंपनी को फायदा पहुंचाने का मामला सामने आया है। यहां अधिकारियों ने दस साल से एक ही कंपनी को ठेका दिया है। इसमें मरीजों के लिए दवा, उपकरण के साथ मेडिकल स्टोर शामिल है। अधिकारियों का दबदबा इतना है कि कई बार शिकायत होने के बाद भी मामले को दबा दिया। आरोप लगाया गया है कि अधिकारी दूसरी कंपनियों में खामियां बताकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। इसका नतीजा यह है कि फिर उसी कंपनी को जांच से लेकर दवा तक का काम सौंप दिया जाता है। वहीं इस मामले पर केजीएमयू प्रशासन का कहना है कि इस बार टेंडर में कई कंपनियों को शामिल किया जाएगा।
विवाद के बाद कोर्ट में मामला
दवा-उपकरण आपूर्ति में जिसकी दर कम आएगी, उसे चुना जाएगा। केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में पहले निजी कंपनी आमा का सीटी स्कैन लगा था। मरीजों की संख्या बढऩे पर डेढ़ साल पहले ही केजीएमयू प्रशासन ने दूसरी कंपनी का सीटी स्कैन लगाने का फैसला लिया। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया समेत अन्य औपचारिकताएं पूरी कर ली गईं। लेकिन विवाद हो गया और यह मामला कोर्ट में चला गया। इसके चलते दूसरी कंपनी की सीटी स्कैन मशीन नहीं लग पाई। वहीं, कंपनी आमा ने अपनी नई सीटी स्कैन मशीन दोबारा लगवा दी। इसी तरह परिसर में एक दूसरी सीटी स्कैन मशीन भी इसी कंपनी की लगी है।
कमीशन का खेल
इसके अलावा केजीएमयू प्रशासन ने मेडिकल स्टोर का संचालन और दवा की आपूर्ति के लिए भी इसी कंपनी को चुना है। यह खेल करीब दस साल से चल रहा है। वहीं कंपनी द्वारा दवाओं की आपूर्ति न कर पाने पर मरीजों को कई दिनों तक परेशानी का सामना करना पड़ता है। निजी कंपनी पर मेहरबानी के पीछे कमीशन का खेल बताया जा रहा है।
इनका यह है कहना
वहीं केजीएमयू के वित्त अधिकारी मो. जमा का कहना है कि दो कंपनियों में से एक कंपनी ने आपूर्ति से मना कर दिया था। जो मशीनें लगी हैं उनका अनुबंध पांच साल का होता है। बीच में कंपनी को नहीं हटाया जा सकता है। वहीं सीएमएस डॉ. एसएन शंखवार ने कहा कि टेंडर के तहत कंपनी को काम सौंपा जाता है।