डेस्क। अस्थमा अक्सर खांसी के रूप में शुरू होता है। इस कारण इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है। अक्सर कफ सिरप लेकर इसका इलाज करने की कोशिश की जाती है। बच्चों में इसकी पहचान करना मुश्किल होता है क्योंकि उनमें श्वसन, घरघराहट, खांसी और छाती की जकडऩ आदि लक्षण एकदम से नहीं दिखते। इसके अलावा प्रत्येक बच्चे का अस्थमा अलग तरह का होता है।
धुआं में कार्बन कणों, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, फॉर्मल-डी-हाइड और कैंसर कारक पदार्थ जैसे बेंजीन से भरपूर होता है।
एक अध्ययन के अनुसार यह धुआं देश में अस्थमा का एक प्रमुख कारण है और यह बच्चों को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में डेढ़ से 2 करोड़ लोगों को दमा की शिकायत है और यह संख्या कम होने के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे। अध्ययनों से यह भी संकेत मिलता है कि बच्चों में अस्थमा का प्रसार अधिक होता है क्योंकि उनकी सांस की नली छोटी होती है जो प्रदूषकों के कारण संकुचित होती जाती है। डॉ. बताते हैं कि अस्थमा एक पुराना श्वसन रोग है। यह ब्रॉन्कियल पैसेज के कम होते जाने का परिणाम है जो फेफड़ों में ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार होता है। अस्थमा के दो कारण हो सकते हैं। वायुमार्ग में बलगम एकत्र होने के कारण फेफड़े में सूजन और वायुमार्ग के चारों ओर की मांसपेशियों के तंग होने के कारण सूजन हो जाती है। कुछ ऐसे ट्रिगर भी होते हैं जो अस्थमा के दौरे को बदतर बना सकते हैं। एक बार यदि बच्चे को अस्थमा होने का पता लग जाता है तो घर से उसके कारणों या ट्रिगर्स को हटाने की जरूरत होती है या फिर बच्चे को इनसे दूर रखने की। युवाओं को यह समझ नहीं आता कि अस्थमा कैसे उनको नुकसान पहुंचा सकता है और इससे उनका दैनिक जीवन कैसे प्रभावित हो सकता है।
कुछ सुझाव
बच्चों को नियमित दवाएं लेने में मदद करें, नियमित रूप से चिकित्सक के पास ले जाएं, उन्हें केवल निर्धारित दवाएं ही दें, किसी भी ट्रिगर से बचने के लिए एहतियाती उपाय करें, इनहेलर हमेशा साथ रखें और सार्वजनिक रूप से इसका इस्तेमाल करने में शर्म महसूस न हो इसके लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें, ज्यादा ठंडा गर्म एखाने से बचायें।