डायरिया, निमोनिया और कुपोषण के खतरे से भी बचाता है मां का दूध
लखनऊ। प्रदेश में स्तनपान एवं शिशु अनुपूरक आहार को बढ़ावा देने के लिए ‘मां’ (मदर एबयल्यूट ऐफेक्शन) कार्यक्रम को धार देने की हर संभव कोशिश की जा रही है। इसके तहत सभी जिलों में मेडिकल ऑफिसर और स्वास्थ्यकर्मियों जैसे-एएनएम, स्टाफ नर्स और आशा कार्यकर्ताओं का स्तनपान व अनुपूरक आहार संबंधित व्यवहारों पर क्षमता वर्धन किया जा रहा है। इसके साथ ही सभी चिकित्सा इकाइयों को बेबी फ्रेंडली बनाते हुए स्तनपान के व्यवहारों को बढ़ावा देने की भी कोशिश चल रही है।
दिया गया है निर्देश
चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने भी इस बारे में प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों, मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों और महिला अस्पतालों की मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका को पत्र जारी कर भी स्वास्थ्य इकाइयों में प्रत्येक स्तर पर स्तनपान संबंधित व्यवहारों को सुदृढ़ करने का निर्देश दे रखा है। इसके लिए स्वास्थ्य इकाइयों पर सफल स्तनपान के दस कदमों के बारे में लेबर रूम के बाहर प्रदर्शन का भी निर्देश दिया गया है।
ऐसा न हो पाए
स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वाय/आया को स्तनपान सम्बन्धी संदेशों की सही जानकारी हो और वह सक्रिय रूप से इन व्यवहारों के बारे में परिवार को बताएं। स्वास्थ्य इकाइयों पर आईएमएस अधिनियम-2003 का भी सख्ती के साथ पालन हो, जिसके तहत किसी भी प्रकार के कृत्रिम डिब्बा बंद दूध, शिशु दूध पूरक, शिशु आहार और दूध की बोतल आदि का शिशुओं के लिए प्रयोग को बढ़ावा देना और प्रचार आदि न होने पाये।
स्तनपान की शुरुआत लेबर रूम के अंदर
लेबर रूम में कार्यरत मेडिकल ऑफिसर और स्टाफ नर्स यह सुनिश्चित कराएं कि जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां की छाती पर रखकर स्तनपान की शुरुआत लेबर रूम के अंदर ही कराएं। नवजात शिशु को मां का पहला दूध मिलने के बाद ही उसे लेबर रूम से वार्ड में शिफ्ट किया जाए। इस बारे में प्रसूता और उसके परिवार के सदस्यों को भी जागरूक किया जा रहा है।
चिकित्सा अधीक्षक करें मूल्यांकन
इसके अलावा नवजात और मां को पोस्ट नेटल वार्ड में शिफ्ट करने के बाद स्टाफ नर्स द्वारा मां को स्तनपान की पोजीशन, बच्चे का स्तन से जुड़ाव और मां के दूध को निकालने की विधि में भी सहयोग किया जाए ताकि कभी समस्या पैदा होने की स्थिति में परिवार वाले आवश्यक कदम उठा सकें। इसके साथ ही चिकित्सा अधीक्षक सप्ताह में कम से कम एक बार लेबर रूम व वार्ड में जाकर इस बारे में मूल्यांकन करें ताकि सही तरीके से इसका पालन हो सके।
डॉक्टर ने कही ये बात
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि शिशु के लिए स्तनपान अमृत के समान होता है। यह शिशु का मौलिक अधिकार भी है। मां का दूध शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बहुत ही जरूरी है। यह शिशु को निमोनिया, डायरिया और कुपोषण के जोखिम से भी बचाता है।
क्या कहते हैं आंकड़े
जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात को स्तनपान कराने से नवजात मृत्यु दर में 33 फीसद तक कमी लायी जा सकती है (PLOS One Journal की Breastfeeding Metonalysis report-2017) । इसके अलावा छ्ह माह तक शिशु को स्तनपान कराने से दस्त रोग और निमोनिया के खतरे में क्रमशः 11 फीसद और 15 फीसद कमी लायी जा सकती है (Lancet Study-Maternal and child Nutrition series 2008 के अनुसार)। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 2015-16 के अनुसार प्रदेश में एक घंटे के अंदर स्तनपान की दर 25.2 फीसद और छह माह तक केवल स्तनपान की दर 41.6 फीसद है। यूनिसेफ द्वारा अप्रैल 2018 से अक्टूबर 2018 तक कराये गए अनुश्रवण के अनुसार प्रदेश में केवल 55 फीसद शिशुओं को ही जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया जा रहा है।