लखनऊ। जहां लोग कुछ समय पूर्व ही डीपीएमआर विभाग में दिव्यांगता का सर्टिफिकेट बनावाने आते थे आज उसी जगह पर ऐसे बच्चों को नया जीवन दिया जा रहा है। कम समय और सस्ता इलाज लोगों को भा रहा है।
जिन बच्चों की कूल्हे की हड्डी नहीं होती या जन्मजात ऐसी समस्या हो, ऐसे बच्चों को चलने में तकलीफ होती है, उन्हें लपककर चलना होता है या ऐसा कहा जाए तो ऐसे बच्चों को किसी न किसी सहारे की जरूरत होती है। ऐसी परेशानी में कूल्हा अपनी कटोरी में ना होकर बाहर होता है। अब परिजनों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। उक्त बातें केजीएमयू के पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर अजय सिंह ने कही।
यह जरूरी बात डॉक्टर की तरफ से
इस बात का परिजन ध्यान दें कि गर्भ में ही अल्ट्रासाउंड के माध्यम से इस बात का पता चल सकता है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को कही ऐसी कोई समस्या तो नहीं। अगर है तो जन्म से तुरंत बाद ही इलाज शुरू कर दिया जाए। यह बाद जरूरी है कि पैदा होने के 2 से 3 हफ्ते में ही इलाज शुरू कर दिया जाए। इस समय में बच्चे को पावलिक हारनेस बेल्ट के माध्यम से ही बेहतर परिणाम सामने आ सकता है। ऐसे में ऑपरेशन की कोई जरूरत नहीं होती है।
इन्हें दिया जीवनदान
पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग में गोरखपुर निवासी एक तीन साल की बच्ची को अपंगता से निजात दिलाते नया जीवनदान दिया गया। बच्ची का ऑपरेशन 23 अगस्त को किया गया। बच्ची के कूल्हे की हड्डी को बनाया गया इसके बाद कटोरी में बैठाया गया। बच्ची का बायां कूल्हे का ऑपरेशन किया गया है, ऑपरेशन करने में करीब 2 से 2.30 घंटे का समय लगा। बच्ची के पिता विनोद विश्वकर्मा ने बताया कि करीब साढ़े सात हजार रुपए का खर्च आया है। बच्ची का एक पैर अभी दूसरे पैर से करीब 3 सेमी छोटा है। डॉक्टरों की मानें तो समय के साथ-साथ यह अंतर भी खत्म हो जाएगा। ऐसे ही एक मामले में एक 14 साल के बच्चे का ऑपरेशन कर उसको नया जीवन दिया गया है।
कम खर्च में अच्छा परिणाम
डॉक्टर अजय सिंह ने बताया कि प्राईवेट अस्पताल में ऐसे ऑपरेशन का खर्च करीब 2.50 से 3 लाख रुपए का आता है। आज के समय में केजीएमयू के पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग में हाथ-पैर का टेढ़ापन, कूल्हा का ऑपरेशन कम खर्च में हो रहा है।
इस टीम ने किया ऑपरेशन
ऑपरेशन करने में डॉक्टर अजय सिंह, डॉक्टर अनिल पाण्डा, डॉक्टर अमितोष, डॉक्टर फैशल और प्रोफेसर अजय चौधरी थे।