लखनऊ। अनियमित जीवन शैली एवं कम उम्र से ही पान मसाला, बीड़ी, सिगरेट आदि के बढ़ते उपयोग से भारत में मुख और जबड़े का कैंसर तेज़ी से फैल रहा है। ऐसे मरीज़ों का सामान्य उपचार सर्जरी रेडिएशन एवं कीमोथेरेपी है, जिससे चेहरे या जबड़े में विकृति या अभाव हो जाते हैं। यह जानकारी केजीएमयू के प्रास्थोडेन्टिस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. पूरनचन्द ने दी। वह शनिवार को प्राॅस्थोडाॅन्टिक्स विभाग द्वारा मैक्सिलोफेशियल प्राॅस्थोडाॅन्टिक्स पर एक आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
केजीएमयू में अत्याधुनिक ढ़ंग से इलाज
प्राॅस्थोडाॅन्टिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पूरन चंद ने बताया कि अभाव ग्रसित जबड़े और चेहरे वाले मरीज़ों का केजीएमयू में अत्याधुनिक ढ़ंग से इलाज होगा। उन्होंने कहा कि हालांकि, सर्जरी रोगी के जीवन को बचा सकती है, परन्तु इन अभावों से जीवन की गुणवत्ता गंभीर रूप से बाधित हो जाती है, सामान्य जीवन-याचिका के कार्य जैसे बोलना, मुस्कुराना, निगलना, चबाना और भोजन खाने सभी पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
मैक्सिलोफेशियल कृत्रिम उपचार के लिये सबसे बड़े और उन्नत केन्द्रों में से एक केजीएमयू
कार्यशाला के वक्ता टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के डेन्टल और प्रास्थेटिक सर्विसेज की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कंचन ढोलम ने कहा, ‘ऐसे मरीज़ों को डिप्रेशन हो सकता है, कभी-कभी ऐसे मरीज़ खुद को समाज से दूर कर लेते हैं।’ केजीएमयू के कुलपति प्रोफेसर एमएलबी भट्ट ने कार्यशाला ने प्राॅस्थोडाॅन्टिस्ट्स को ऐसे मरीज़ों के प्रास्थैटिक उपचार एवं पुनर्वास के बारे में महत्वपूर्ण और नई जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि केजीएमयू उत्तर भारत में मैक्सिलोफेशियल कृत्रिम उपचार के लिये सबसे बड़े और उन्नत केन्द्रों में से एक है।
अधिकांश उपचार कैंसर रोगियों को मुफ्त में
उन्होंने बताया कि यहां पर अधिकांश उपचार कैंसर रोगियों को मुफ्त में प्रदान किये जाते हैं। आयोजन सचिव प्रोफेसर सौम्येन्द्र सिंह ने कहा कि मुख और जबड़े के कैंसर के मरीज़ों को समाज में पुर्नस्थापित करने एवं आत्म विश्वास लौटाने के लिये मैक्सिलोफेशियल कृत्रिम पुनर्वास (नकली जबड़े व उनके अवयव) महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि कार्यशाला ने इम्पलान्ट में प्रशिक्षण प्रदान किया है ताकि ऐसे मरीज़ों का अधिक तेज़ी, सुनिश्चित्ता एवं सुविधा से उच्चस्तरीय पुनर्वास हो सके।
40 शोध पत्र प्रस्तुत
उनका कहना था कि चेहरे के अभाव एवं विकृति के लिये इस समय यह सर्वोच्च पद्धति है। साइंटिफिक सचिव डॉ दीक्षा आर्या ने कहा कि कार्यशाला में 200 से अधिक विशेषज्ञ उपस्थिति के साथ भारत में मैक्सिलोफेशियल प्राॅस्थोडाॅन्टिक्स की सबसे बड़ी कार्यशालाओं में से एक थी। मुख और जबड़े के कैंसर रोगियों के प्रास्थेटिक पुनर्वास के विभिन्न पहलुओं पर डाक्टरों द्वारा लगभग 40 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये।