लखनऊ। डायरिया विकासशील देशों की बीमारी है और इसका सबसे बड़ा कारण साफ-सफाई का ना होना और स्तनपान कराने में लापरवाही है। उत्तर प्रदेश में बच्चों की मौत की तीसरा सबसे बड़ा कारण डायरिया है। इस बीमारी को 2019 तक रोटावायरस की मदद से कम करने की लड़ाई लड़ी जाएगी। उक्त बातें उत्तर प्रदेश की कैबिनेट मंत्री, परिवार कल्याण, पर्यटन, महिला एवं बाल कल्याण डॉ. रीता बहुगुणा जोशी ने कही।
गोमती नगर स्थित एक होटल में मंगलवार को कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने बच्चों को रोटावायरस से होने वाली जानलेवा दस्त से बचाने वाली पिलाई जाने वाली वैक्सीन का शुभारंभ किया। इस दौरान मंत्री ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उन्होंने 6 हफ्ते के एक बच्चे को रोटावायरस पिलाई। उन्होंने कहा कि प्रदेश के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में 4 सितंबर से एक नई वैकसीन शामिल की जा रही है। यह वैक्सीन बच्चों को गंभीर दस्त से बचाएगी। कार्यक्रम में करीब 10 बच्चों को रोटावायरस पिलाया गया।
इस मामले में उत्तर प्रदेश देश का ग्यारहवां राज्य
इस दौरान कार्यशाला में शामिल राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉक्टर एपी चतुर्वेदी ने बताया कि प्रत्येक नवजात को जन्म के छठे, दसवें और चौदहवें सप्ताह में रोटा वायरस वैक्सीन की पांच बूंदे पेन्टा-1, 2 और 3 वैक्सीन के साथ पिलाई जानी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब उत्तर प्रदेश देश का ग्यारहवां ऐसा राज्य होगा, जो इस वैक्सीन को बच्चों को रोटा वायरस से पूर्ण प्रतिरक्षित करेगा।
डायरिया से 57 लाख नवजात शिशुओं का बचाव
परिवार कल्याण विभाग की महानिदेशक नीना गुप्ता ने कहा कि इस साल मई तक 2.1 करोड़ से अधिक रोटावायरस वैक्सीन बच्चों को दी जा चुकी है। रोटावायरस वैक्सीन के शुरुआती दौर में, केवल पहली ओपीवी की खुराक और पेंटावेलेंट के लिए आने वाले शिशुओं को रोटावायरस की ड्रॉप दी जाएगी। रोटावायरस वैक्सीन की मदद से हर साल डायरिया से 57 लाख नवजात शिशुओं का बचाव किया जाएगा।
देश में 5 साल से कम उम्र के लगभग 78,000 बच्चों की मौत
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश के मिशन निदेशक पंकज कुमार ने कहा कि वैश्विक स्तर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों में 9 प्रतिशत और भारत में 10 प्रतिशत के लिए डायरिया जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि रोटावायरस लगभग 40 प्रतिशत मध्यम से गंभीर डायरिया का कारण है। देश में 5 साल से कम उम्र के लगभग 78,000 बच्चों की मौतें हुई हैं। अनुमान लगाया गया है कि भारत हर साल रोटावायरस डायरिया के प्रबंधन पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च करता है।
इन्होंने यह कहा
कार्यशाला में शामिल उत्तर प्रदेश यूनीसेफ के हेल्थ ऑफीसर डॉक्टर प्रफुल्ल भारद्वाज ने बताया कि प्रदेश में रोटावायरस की शुरुवात की गई है। इससे दो साल से कम उम्र के बच्चे को डायरिया से पीडि़त है या असमय मृत्यु हो रही है, उससे बचने में लाभदायक है। यूनीसेफ के अमित मेहरोत्रा ने बताया कि वैश्विक स्तर पर रोटावायरस बीमारी से निजात पाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सभी देशों के राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम में इस वैक्सीन को शामिल करने को कहा गया है। जिन 95 देशों में रोटावायरस वैक्सीन की शुरुआत हुई है वहां रोटावायरस के कारण अस्पताल में भर्ती और मृत्यु की दर में कमी दर्ज की गई है।
सवाल का जवाब
कार्यशाला के अंत में रोटावायरस को लेकर सवाल किया गया कि यदि किसी इलाके में शिविर के माध्यम से रोटावायरस दिया जा सकता है तो इसका जवाब दिया गया कि यदि किसी गांव में टीकाकरण सत्र नहीं चला हुआ है तो सीएमओ के द्वारा शिविर में रोटावायरस किया जा सकता है।
डॉक्टर ने बताया डोज
डॉक्टर प्रफुल्ल ने बताया कि रोटावायरस की तीन डोज, पहला 6 हफ्ता, दूसरा 10 हफ्ता और तीसरा 14 हफ्ते पर लगाया जाता है। इसके अलावा कोई और एडीशनल डोज नहीं लगती। स्तनपान के बाद भी यह लगाया जा सकता है क्योंकि इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। यह वैक्सीन सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त उपलब्ध रहेगी।