नोएडा। जेपी अस्पताल में यूर्मेटोलॉजी विभाग की कन्सलटेंट डॉ. सोनल मेहरा का कहना है कि एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है।
भारत में हर 1000 में से एक वयस्क इस बीमारी का शिकार है। आज के दौर में जहां एक ओर जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरुकता कई गुना बढ़ गई है, वहीं दूसरी ओर जागरुकता के अभाव में एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (एएस) जैसी बहुत सी बीमारियों के खतरे का सामना लोगों को करना पड़ता है। इसका परिणाम यह है कि देश में हर 1000 में एक वयस्क एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीडि़त है। इसे जोड़ों, रीढ़ और कूल्हे की क्रॉनिक सूजन के रूप में जाना जाता है।
40 लाख लोग एएस से पीडि़त
यह बीमारी 40 साल से कम उम्र के युवाओं में ज्यादा पाई गई है और इसके प्रमुख कारणों में गतिहीन जीवनशैली, बैठने का गलत तरीका, तनाव, काम का बहुत अधिक दबाव शामिल हैं। इसके चलते कई बार दर्द बहुत गंभीर रूप ले लेता है। डॉ. मेहरा ने कहा कि भारत में तकरीबन 40 लाख लोग एएस से पीडि़त हैं। यह बीमारी युवाओं में आजकल आम है और जीवन के सबसे उपयोगी वर्षों में उनपर बुरा असर डाल रही है। इस बीमारी में मरीज को पीठ के निचले हिस्से और गर्दन के पिछले हिस्से में बहुत ज्यादा दर्द एवं अकडऩ महसूस होती है।
जागरुकता की कमी
रोग के जल्दी निदान के महत्व के बारे में जेपी अस्पताल में स्पाइन सर्जरी विभाग केकंसल्टेंट डॉ. सौरभ रावल ने कहा कि आज भी आम जनता ही नहीं, बल्कि डॉक्टरों में भी एएस के बारे में जागरुकता की कमी है, जिसके चलते बीमारी का पता समय पर नहीं चल पाता। रोग का पता चलने के बाद जरूरी है कि जल्द से जल्द मरीज का सही इलाज शुरू किया जाए, दवाओं के साथ थेरेपी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।