लखनऊ। केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग की टीम ने एक और उपलब्धि हासिल की है। यहां कोमा में गए एक मरीज की जान सीपीआर और बोनकोस्कोपी कर बचा ली गई है। मरीज ब्रेन टीबी से पीडि़त था और मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन आने से वह कोमा में चला गया था। मरीज को सांस लेने में परेशानी हो रही थी क्योंकि मरीज को उल्टी होने से फ्लूड फेफड़े में पहुंच गया था। आरआईसीयू में करीब 37 दिन वेंटीलेटर में रहने के दौरान दो बार मरीज की सांसें टूट गई, लेकिन डाक्टरों ने कड़ी मेहनत करके मरीज की सांसें लौटा दी। इस दौरान उसे आठ यूनिट खून भी चढ़ाना पड़ा।
डॉ. वेद प्रकाश ने पत्रकार वार्ता में बताया कि संक्रमण की वजह से मरीज के शरीर में प्लेटलेट्स काफी कम हो गए थे इससे प्लाज्मा का स्तर भी गिर गया था। ऐसे में मरीज का हीमोग्लोबिन कम हो गया था। सबसे पहले मरीज के सांस की नली में जमा रक्त का थक्का हटाया गया। ऐसके लिए आठ बार ब्रांकोस्कोप किया गया।
यह हुआ था
आजमगढ़ केकोलघाट निवासी अधिवक्ता बलिहारी यादव (71) को 23 जनवरी को चक्कर आ गया था और वो गिर पड़े थे। परिजनों ने उन्हें निजी अस्पातल में भर्ती कराया, लेकिन हालत नहीं सुधरी और वह कोमा में चले गए। उनकी संासें भी अटक रही थीं। हालत बिगडऩे के कारण 29 जनवरी को ट्रामा सेंटर रेफर किया गया। मरीज के फेफड़े में फ्लूड पहुंच गया था।
पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के वेद प्रकाश ने आरआईसीयू में शिफ्ट किया। मरीज बलिहारी की हालत बिगड़ रही थी। ब्रांकोस्कोप करने पर मरीज के इंटरनल ब्लीडिंग की वजह से उसकी सांस नली ट्रैकिया, बाएं और दाएं ब्रांकस में रक्त का थक्का जमा था। जांच में पता चला कि खून के क्लाट जमने की वजह से बांया फेफड़ा प्रभावित हुआ है। इस पर तत्काल एंटीबायोटिक्स के साथ एंटीफंगल, एंटीट्यूबरकुलर थेरेपी व अन्य जीवन रक्षक दवाएं दी गईं।
आठ बार ब्रोनकोस्कोपी
भर्ती होते ही रात करीब दो बजे डा. वेद प्रकाश व उनकी टीम ने आठ बार ब्रोनकोस्कोपी की। इस दौरान एक बार में करीब 12 सेंटीमीटर और दूसरी बार में करीब 10 सेंटीमीटर और फिर छोटे-छोटे टूकड़े में खून के थक्के बाहर निकाले। उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया। करीब 37 दिन वेंटीलेटर पर रहने के बाद अधिवक्ता बलिहारी जिंदगी की जंग जीत गए। इंफेक्शन अधिक होने की वजह से मरीज को आठ यूनिट खून चढ़ाना पड़ा।
दो बार सीपीआर
एसोसिएट प्रोफेसर डा. वेद प्रकाश ने बताया कि पहली बार सात फरवरी की रात मरीज का हार्ट फेल हो गया। सांसें टूटने लगीं। पूरी टीम के साथ सीपीआर देना शुरू किया। करीब 12 मिनट के प्रयास के बाद रिकवरी हो गई। दोबारा 18 फरवरी को भी हार्ट थमने पर करीब 15 से 18 मिनट सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिसक्सिटेशन) देना पड़ा। ऐसे में शरीर में कृत्रिम तरीके से रक्त परिसंचरण कर मरीज की धड़कनें लौटा दीं।
ये थे टीम के प्रमुख सदस्य
इस मरीज की जान बचाने में एसोसिएट प्रोफेसर डा. वेद प्रकाश के साथ डा. लक्ष्मी, डा. अंकित कुमार, डा. सुलक्षणा गौतम, डा. अभिषेक, डा. अहवाब, डा. कैफी, डा. अल्पिका, डा. विकास गुप्ता, डा. शैैलेंद्र कुमार, डा. आकाश सिरोही, डा. प्रियंका, डा. संतोष, डा. ऐना के, सिस्टर इंचार्ज सुशीला वर्मा, मेराज अहमद, रतिका ज्योति, संदीप सबा, शामिनी, नेहा, सिमरन, शिवानी, अनीश, आदर्श, केके शुक्ला, हिना, आलिया, एसपी मौर्या, नवनीत आदि शामिल थे।