लखनऊ। एक प्रमुख नेशनल हेल्थ एनजीओ, एचसीएफआई द्वारा किये गये एक अध्ययन में खुलासा किया गया है कि लगभग 5 से 10 प्रतिशत आबादी में इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम (आईबीएस) के लक्षण मौजूद होते हैं, हालांकि, उनमें से अधिकांश लोग इसका इलाज नहीं कराते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य चिकित्सक और रोगी के दृष्टिकोण से आईबीएस का विश्लेषण करना था, ताकि रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव, पहचान की दर और उपचार के विकल्पों पर इसके प्रभाव को जाना जा सके। हालांकि 84.6 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि पेट के दर्द या आईबीएस के अन्य लक्षणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इनमें से 58 प्रतिशत राहत के लिए बाजार से दवा ले लेते हैं और डॉक्टर को नहीं दिखाते हैं। करीब 13.3 प्रतिशत चिकित्सकों ने कहा कि वे अपने मरीजों को पिपरमिंट ऑयल लिखते हैं। हालांकि, सिर्फ 0.1 प्रतिशत मरीजों ने दावा किया कि उन्हें उपचार के लिए पिपरमिंट ऑयल दिया गया।
इसके बारे में बोलते हुए, सीनियर गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट एवं हेपेटोलॉजिस्ट, ग्लोब मेडिकेयर, के डॉ. दीपक अग्रवाल ने कहा, आईबीएस को मैनेज करने में भले ही जीवन शैली में परिवर्तन कारगर सिद्ध होते हैं, परंतु इसकी कुछ अन्य उपचार विधियां भी हैं। आईबीएस के लिए आमतौर पर उपयोग की जाने वाली पारंपरिक दवाएं लेक्सेटिव हैं, जो मल को नर्म करने का कार्य करती हैं, एंटी-स्पेज्मोस्मिक्स जैसे पिपरमिंट का तेल जो ऐंठन और दस्त रोकता है और ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स जो मूड को ठीक रखती हैं। हाल के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि इसमें पिपरमिंट ऑयल अत्यधिक प्रभावी है। यह भी जरूरी है कि जीवनशैली में कुछ बदलाव किये जायें, जैसे सक्रिय रहा जाये और स्वस्थ भोजन किया जाये।
ये हैं लक्षण
मलत्याग की आदतों में परिवर्तन के साथ पेट में दर्द। पेट में दर्द मरोड़ के साथ उठता है और इसकी तीव्रता भिन्न होती है। कुछ लोगों का कहना है कि कि भावनात्मक तनाव और खाने में गड़बड़ी से दर्द बढ़ सकता है और मलत्याग करने से दर्द में राहत मिलती है। महिलाएं पेट के दर्द और मासिक धर्म के बीच संबंध नोटिस कर सकती हैं।
गैस्ट्रो डिपार्टमेंट, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, एसजीपीजीआई, लखनऊ के डॉ. उदय सी घोषाल ने कहा कि भारत में आईबीएस के बारे में जागरुकता की कमी है और यह तथ्य है कि यह काम से अनुपस्थिति के प्रमुख कारणों में से एक है। इस हालत के कुछ लक्षणों में कब्ज, दस्त या दोनों शामिल हैं। संबंधित मनोवैज्ञानिक गड़बड़ी और कई शारीरिक लक्षण मरीजों के अनुपात में जुड़े हुए हैं।
डॉक्टरों ने माना कि आईबीएस के उपचार में एक आदर्श एंटीस्पेज्मोडिक से पेट दर्द, असुविधा, सूजन से राहत मिलनी चाहिए और इसके साइड इफेक्ट कम से कम होने चाहिए। पिपरमिंट ऑयल एक अच्छे विकल्प के रूप में उभरा है, क्योंकि लगभग आधे डॉक्टरों का मानना है कि आंतों की चिकनी मांसपेशियों पर अपने प्रभाव के कारण यह पेट दर्द, गैस, सूजन और बुखार से तत्काल राहत दिलाता है।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट, डॉ. के के अग्रवाल ने कहा, हरेक को एक साधारण मंत्र तो यह याद रखना चाहिए कि अगर पेट में दर्द नहीं है, तो यह आईबीएस नहीं हो सकता। रोग के बारे में जागरुकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है।