हृदय से संबंधित एक रोग है, जिसे पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहते हैं। इस रोग में फेफड़ों तक रक्तले जाने वाली रक्तवाहिका में रक्त का थक्का जम जाता है। इससे फेफड़ों में रक्तसंचार बाधित होता है। आमतौर पर ये खून के थक्के पैरों की नसों से गुजरते हुए ऊपर आकर फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं में अटक जाते हैं। इस रोग का समय पर इलाज लेना जरूरी है।
पहचान जरूरी
एक हजार लोगों में से एक को यह रोग होता है। समय पर जांच व पहचान से रोगी की जान बच सकती है। सीटी स्कैन, ब्लड में डी डायमर, ईसीजी, ईको जांच से हृदय की नसों में थक्के की पहचान कर इलाज करते हैं।
प्रमुख लक्षण
हर व्यक्ति में लक्षण भिन्न होते हैं। अचानक सांस लेने में दिक्कत, अनियमित धड़कनें, गहरी सांस लेने, खांसने या झुकने के दौरान सीने में दर्द, खांसी के साथ खून आना, पैरों में सूजन, तेज पसीना आना, शरीर ठंडा पडऩा आदि लक्षण मुख्य हैं।
इलाज
यह दो तरह से होता है। पहला, यदि थक्का बन चुका है तो उसे पिघलाना और दूसरा, दोबारा थक्का न बने इसके लिए दवा देते हैं। इमरजेंसी की स्थिति में थक्के को पिघलाने के लिए थ्रॉम्बोलिटिक एजेंट्स देकर मरीज की जान बचाते हैं ताकि फेफड़ों में रक्तसंचार चालू हो सके। हालत में सुधार और रक्त में ऑक्सीजन मिलते ही दोबारा थक्का न जमे इसके लिए एंटीकोएग्यूलेंट्स देते हैं।
इन्हें अधिक खतरा
फेफड़े, बे्रस्ट, सांसनली, ओवरी के कैंसर रोगियों में खतरा अधिक होता है। इसके अलावा हाल ही कोई बड़ी सर्जरी या ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट हुआ हो, लंबे समय से चल रहे किसी रोग के कारण बैड रेस्ट पर हो, हार्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी व ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स लेने वाली महिलाओं में, लंबी यात्रा के दौरान ज्यादा देर बैठे रहने व वजनी लोगों में आशंका रहती है।