डेस्क। अक्सर जब हम लोग चलते फिरते हैं तो हमें बौने लोग दिख ही जाते होंगे। एक साल की उम्र तक बच्चे का उचित विकास न हो तो माता-पिता को एंडोक्रायोनोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन से संपर्क करें। विशेषज्ञ बच्चे को तीन साल तक ऑब्जर्वेशन में रखने के बाद बौनेपन के बारे में निर्णय लेते हैं। पांच से सात साल की उम्र में ग्रोथ हार्मोन इंजेक्शन लगाए जाते हैं। हर तीन माह में रक्त जांच करके हार्मोंस वृद्धि का पता लगाया जाता है। यदि नतीजे पॉजिटिव होते हैं तो दोबारा इंजेक्शन लगाया जाता है। यह प्रक्रिया 13-15 साल की उम्र तक चलती है।
बौनेपन की पहचान बाल्यावस्था में बच्चे के विकास की गति और लक्षणों से की जा सकती है। जब बच्चे की लम्बाई उम्र के अनुसार न होकर बहुत ही धीमी गति से हो तो यह भी बौनेपन का एक लक्षण हो सकता है। आज के समय में विभिन्न जांचों में मुख्य रूप से खून में ग्रोथ हार्मोन के स्तर की जांच प्रारंभिक अवस्था में करने पर यह तय किया जा सकता है कि कहीं इसकी कमी के कारण बच्चा भविष्य में बौनेपन का शिकार तो नहीं हो जाएगा।
रोजोमेलिक – इस तरह के बौने व्यक्तियों में बाजू और जांघ बहुत छोटे होते हैं। बाकी शरीर सामान्य होता है।
मिजोमेलिक – इनमें बाजू के अग्र भाग और पैरों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम होती है। बाकी शरीर सामान्य होता है।
एक्रोमेलिक – जब पैर व हाथ दोनों ही बहुत ज्यादा छोटे होते हैं बाकि शरीर की लम्बाई सामान्य होती है।
माइक्रोमेलिक – जब हाथ व पैरों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम होती है।
जब लंबाई 147 सेमी. से कम हो तो उसे बौना व्यक्ति कहा जाता है। लेकिन हर बौने व्यक्ति के शरीर के लक्षण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। बौनापन में शरीर के सभी अंग सामान्य से छोटे होते हैं।
यदि रक्त में इसका स्तर सामान्य पाया जाए और यदि बच्चे में वंशानुगत जांच एफजीएफआर-3 जीन में त्रुटि पाई जाए तो बाल्यावस्था में ही बौनेपन की बीमारी को पहचाना जा सकता है। बच्चे के शरीर के सभी जोड़ों के एक्स-रे व एमआरआई से प्रारम्भिक अवस्था में ही बौनेपन की पहचान की जा सकती है। यदि बच्चे की लम्बाई कम है और जांच में कोई बीमारी न मिले तो उसे बौनापन नहीं कहकर छोटे कद का व्यक्ति कहा जाता है जो एक सामान्य व्यक्ति की तरह जिंदगी जीता है।
कारण
शरीर से जुड़ी 300 तरह की बीमारियों में से कोई एक बौनेपन का कारण होती है लेकिन इससे ग्रसित 70 प्रतिशत व्यक्तियों में बौनेपन की वजह पीयूष ग्रंथि द्वारा स्त्रावित ग्रोथ हार्मोन का न बनना होता है। दूसरा मुख्य कारण जिसे एकोण्ड्रोप्लेजिया कहते हैं इसमें शरीर के जोड़ों में असमानता व लचीलापन होता है। यह समस्या आनुवांशिक होती है। इसमें एफजीएफआर-3 नामक जीन में बदलाव से हड्डियों की वृद्धि नहीं होने के कारण बौनापन हो जाता है।