लखनऊ। जिले में बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर फिलहाल कोई भी राजनीतिक दल चिंता जाहिर नहीं कर रहा है। गौरतलब है कि लखनऊ में कृत्रिम फेफड़ा लगाया गया था जो कुछ ही दिनों में काला पड़ गया था। यह काफी चिंताजनक है। जिले में लोग स्वास्थ्य से जुड़ी आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। यह बात हम नहीं इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की एक रिपोर्ट की रही है। आज देश की 99 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन तो दूर, भारतीय मानकों तक के हिसाब से बदतर हो चुकी है।
यह है आंकड़ा
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के सबसे 15 प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और आगरा शामिल हैं। इन शहरों के लोग दुनिया की सबसे प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 में बाहरी वायु प्रदूषण के सम्पर्क में आने से मरने वालों की संख्या 6 प्रतिशत थी, जबकि घरेलू प्रदूषण से मृतकों की संख्या कुल मौतों की 5 प्रतिशत थी।
तत्काल कदम उठाने की सख्त जरूरत
भले ही वायु प्रदूषण आज अहम चुनावी मुद्दा नहीं है, लेकिन अब इसे ज्यादा वक्त तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पर्यावरणविदों की मानें तो वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए तत्काल कदम उठाने की सख्त जरूरत है। नयी दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड्स जल्द ही एक रिपोर्ट /तथ्यपरक दस्तावेज जारी करेगा जो 16वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान सांसदों द्वारा वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उठाये गये विभिन्न कदमों पर आधारित है। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित सबसे प्रदूषित 14 शहरों में शुमार लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और आगरा के जनप्रतिनिधियों की गतिविधियों को खासतौर से शामिल किया गया है।
हर स्तर पर हो प्रदूषण का समाधान : आरती खोसला
क्लाइमेट ट्रेंड्स की डायरेक्टर, आरती खोसला का कहना कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा वायु प्रदूषण को अपने मैनिफेस्टों में शामिल करना सही दिशा में उठाया गया कदम है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सेक्टरल टारगेट की बात कही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी का संकल्प पत्र में एनसीएपी को एक मिशन में परिवर्तित करने की बात करता है।
उच्च स्तरीय नेतृत्व की जरूरत
उन्होंने कहा कि हमारे एनालिसिस में भारत के जिन 14 प्रदूषित शहरों का जिक्र किया गया है, साफ दिखता है कि वहां असुरक्षित वायु की समस्या को आंशिक रूप से देखा जा रहा है। कम निगरानी और अपर्याप्त आंकड़ों की वजह से हम इस समस्या के बारे में बेहद कम समझ पा रहे हैं। वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर करने की जरूरत है। इसके लिए उच्च स्तरीय नेतृत्व की जरूरत है। हमें उम्मीद है कि बीजेपी के मिशन से वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार होगा।