लखनऊ। केजीएमयू के एनाटमी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. पीके शर्मा ने शनिवार को कहा कि हिन्दी एक सशक्त, सरल व संपूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। मातृभाषा में ही छात्रों की प्रतिभा और उनके मौलिक चिन्तन का विकास होता है। इसलिए चिकित्सा शिक्षा व शोध कार्य हिन्दी भाषा में ही होना चाहिए। वे केजीएमयू के मैक्सियोफेसियल सर्जरी विभाग द्वारा हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए आयोजित ‘पुनर्भव:Ó कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
एमसीआई भी बनाये गाइडलाइन
प्रो. पीके शर्मा ने कहा कि हिन्दी को अनिर्वाय भाषा करना चाहिए। इसके लिए संसद में कानून पास करना चाहिए। हिन्दी में किताबें बनें। एमसीआई भी इसके लिए गाइडलाइन बनाये। प्रो. शर्मा ने कहा कि विकसित राष्ट्रों में आज भी पढ़ाई-लिखाई से लेकर सारे शोध व अन्य कामकाज वहां की मातृ भाषा में ही किए जाते हैं। जर्मनी, चीन, जापान, अमेरिका जैसे तमाम देशों में वहां की स्थानीय भाषा को ही प्रयोग किया जाता है।
प्रो. टीसी गोयल ने कहा कि हिन्दी को हिन्दी को विज्ञान की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य देशों में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का जन्म हुआ। वहां की भाषा अंग्रेजी थी। इसलिए चिकित्सा विज्ञान की भाषा अंग्रेजी बनी। हमें भी अपनी मातृभाषा को पठन-पाठन में अनिवार्य विषय बनाना होगा।
पुनर्भव: का मतलब ही वापस पाना
केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने कहा कि पुनर्भव: का मतलब ही वापस पाना है। उन्होंने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए जो प्रयास चल रहा है। उसमें हिन्दी भाषा का योगदान भी मुख्य रूप से अनिवार्य होगा। हमें यह समझना होगा। इसके साथ ही उन्होंने आशा की कि आज के इस कार्यक्रम से प्रेरणा लेते हुए यहां उपस्थित समस्त छात्र, चिकित्सक एवं चिकित्सा शिक्षक सभी हिन्दी भाषा को अपनाने एवं ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करेंगे।
डॉ. मंसूर ने संस्कृत भाषा से परिचित कराया
अतिथि डॉ. मंसूर हसन ने हिन्दी को देश की जुबान बताते हुए कहा कि हिन्दी की रूह संस्कृत है। यह हम सब का दुर्भाग्य है कि हम सब आज के समय में संस्कृत भाषा का ज्ञान खोते जा रहे हैं। उन्होंने गीता के कई श्लोकों के माध्यम से सभा में उपस्थित अतिथि को संस्कृत भाषा से परिचित कराया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री से अलंकृत ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता दंत संकाय प्रो. शादाब मोहम्मद ने कहा कि सर सीवी रमन और मेघनाद शाहा जैसे वैज्ञानिकों ने मातृभाषा में पढ़ाई कर महान वैज्ञानिक बने।
हिन्दी दोयम दर्जे की भाषा बनती जा रही : प्रो. विभा
कार्यक्रम की संयोजक प्रो. विभा सिंह ने कहा कि आज अपने ही देश में हिन्दी दोयम दर्जे की भाषा बनती जा रही है। इसके जिम्मेदार हम सब ही हैं, क्योंकि धीरे-धीरे हमारी मानसिकता ऐसी बनती जा रही है कि हिन्दी में पढऩे-लिखने से हम अन्य लोगों के मुकाबले पीछे रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि जब विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने वाले छात्र, उन्हें पढ़ाने वाले प्रोफेसर और इलाज कराने वाले मरीज हिन्दी जानते व समझते हैं तो अंग्रेजी में पढ़ाई क्यों होती है।
इस मौके पर दंत संकाय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ नीरज मिश्रा, प्रास्थोडेन्टिस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ पूरनचंद, डॉ. लक्ष्य यादव, डॉ मयंक सिंह और डॉ यूएस पाल प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।