लंदन। वैज्ञानिकों ने पहली बार पता लगाया है कि हमारा दिमाग किसी चीज को स्थायी तौर पर कैसे याद रखता है। उन्होंने पाया है कि दिमाग की कुछ विशेष तरंगें याददाश्त को ठोस बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं।
शोधकर्ताओं ने उस खास प्रक्रिया की सफलतापूर्वक उस प्रक्रिया की पहचान की, जो हमारे दिमाग की तरंगों को नियमित करता है। उन्होंने पाया कि किसी भी घटना या चीज की याद दिमाग में होने वाली एक खास प्रक्रिया से होकर गुजरने के बाद ज्यादा ठोस हो जाती है। इस प्रक्रिया में दिमाग की (शार्प वेब रिपल्स एसडब्ल्यूआर) नामक लहरदार तरंगें अहम भूमिका निभाती हैं।
अध्ययन से उजागर हुआ कि एसडब्ल्यूआर तरंगों पर दो तंत्रिका कोशिकाओं के जोड़ या तंत्रिका कोशिका और किसी मांसपेशी के जोड़ वाली जगह (सिनेप्स) का नियंत्रण होता है। वास्तव में यह जोड़ दिमाग को यह तय करने में मदद करता है कि उसे किसी अनुभव पर तत्काल क्या प्रतिक्रिया देनी या नहीं देनी है। इस प्रक्रिया को सिनेप्टिक निषेध कहते हैं।
एसडब्ल्यूआर दिमाग की तीन प्रमुख तरंगों में से एक है। यह दिमाग के उस हिस्से से निकलती है जिसे हिप्पोकैंपस कहा जाता है। हिप्पोकैंपस याददाश्त के निर्माण से जुड़ा होता है। द इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया के प्रोफेसर पीटर जोनास ने कहा कि हमारे अध्ययन ने दिखाया कि सिनेप्टिक निषेध बिल्कुल सटीक समय पर एसडब्ल्यूआर को पैदा करता है।
शोधकर्ताओं ने चूहे पर किए गए इस अध्ययन में देखा कि एसडब्ल्यूआर की इस प्रक्रिया के दौरान तंत्रिका कोशिकाओं के जोड़ों पर अस्थायी उत्तेजना या अवरोध पैदा होता है। इसी से किसी याद स्थायी या अस्थायी बनना तय होता है। जब एसडब्ल्यूआर पैदा होती है तब उत्तेजना या अवरोध की आवृत्ति बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि उत्तेजना के समय सिनेप्टिक निषेध ने एसडब्ल्यूआर को नियंत्रित किया। इससे साफ हुआ कि वह एसडब्ल्यूआर का आकार और क्षमता तय करता है। उन्होंने उन तंत्रिका कोशिकाओं को भी पहचाना जो एसडब्ल्यूआर को पैदा करने के लिए जिम्मेदार होती हैं।