लखनऊ। केजीएमयू के कलाम सेंटर में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। टीबी और फंगस की पहचान अब अल्ट्रासाउंड व सीटी स्कैन की जांच से संभव है। अब टीबी और फंगस की पहचान के लिए खनू की जांच नहीं करानी होगी। इस जांच से मरीजों को भी सहूलियत होगी। यह जानकारी केजीएमयू रेडियोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. नीरा कोली ने दी है। डॉ. नीरा रविवार को रेजिडेंट एजुकेशन प्रोग्राम को संबोधित कर रही थी।
बीमारी की पहचान समय पर होने से इलाज आसान
इस दौरान डा. नीरा कोली ने कहा कि रेडियोलॉजी ने बीमारियों को समय पर पहचानने में काफी मदद की है। यही कारण है कि अब टीबी और फंगस के अंतर को आसानी से पकड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि फंगस के भी मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। हालांकि दोनों की पहचान समय से होने पर इलाज काफी आसान हो गया है।
एक जैसे होते हैं लक्षण
फंगस और टीबी के लक्षण एक समान होते हैं। जैसे टीबी में मरीज को लगातार बुखार, सांस में तकलीफ, पीठ में दर्द व खून आने की शिकायत होती है। कमोवेश फंगस में भी यही लक्षण होते हैं। संसाधनों की कमी से दोनों बीमारियों में फर्क करना कठिन था। अब रेडियोलॉजी से यह संभव हो रहा है। उन्होंने बताया कि टीबी को 2020 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन यह मुश्किल लग रहा है।
रेडिएशन का खतरा कम
केजीएमयू रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. अनित परिहार ने बताया कि अल्ट्रासाउंड से गंभीर बीमारियों की पहचान की जा रही है। इससे सीटी स्कैन की जरूरत में 25 फीसदी तक कमी आई है। खासकर छोटे बच्चों को इसका बड़ा फायदा हुआ है। अल्ट्रासाउंड में सीटी स्कैन और एमआरआई की तुलना में रेडिएशन का खतरा भी कम हो जाता है। एक सीटी स्कैन में 400 से ज्यादा एक्सरे के बराबर रेडिएशन होता है।