लखनऊ। जन्म का पहले 1000 दिन, गर्भावस्था से लेकर पहला दो वर्ष बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए एक अनूठा अवसर होता है। इसी दौरान बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास की आधारशिला तैयार होती है जो पूरे जीवन बच्चे के काम आती है। लेकिन अक्सर गरीबी और कुपोषण के कारण यह आधारशिला कमजोर हो जाती है, जिसके कारण समय पूर्व मौत और शारीरिक विकास प्रभावित होता है।
इसलिए है महत्वपूर्ण
यह बच्चे के विकास, बढ़त और स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि है जिसमें हम बच्चे व मां को सही समय व सही पोषण प्रदान कर उसे एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन प्रदान कर सकते हैं। कुपोषण का एक चक्र होता है और इस चक्र को तोडऩा जरूरी है क्योंकि यदि एक किशोरी कुपोषित है तो वह भविष्य में जब गर्भवती होगी तो वह कुपोषित ही रहेगी और एक कुपोषित बच्चे को जन्म देगी। पहले 1000 दिन में उपलब्ध पोषण बच्चों को जटिल बीमारियों से लडऩे की ताकत देता है। बच्चे के जीवन के पहले 1000 दिन में उचित पोषण की कमी के ऐसे परिणाम हो सकते हैं जिन्हें पुन: परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
ये है डॉक्टर की राय
वीरंगाना अवंतीबाई अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान बताते हैं कि पहले 1000 दिन बच्चे के जीवन की नींव होते हैं। यह नहीं सोचना चाहिए कि बच्चा जब दुनिया में आएगा तब ही उसके खान-पान पर ध्यान देना है, बल्कि बच्चा जिस दिन से मां के गर्भ में आता है उसी दिन से उसका शारीरिक मानसिक विकास होना प्रारंभ होने लगता है।
बच्चा जब तक मां के गर्भ में होता है तब तक वह पूर्णत: मां के भोजन पर निर्भर होता है। अत: गर्भावस्था के दौरान मां को आयरन, फोलिक एसिड व आयोडीन युक्त भोजन व संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को पोषण मिलता रहे। प्रसव के बाद 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिए तथा 6 माह के बाद बच्चे को कम से कम दिन में दो से तीन बार खाना खिलाये और चम्मच से खिलाये ताकि बच्चें को आदत पड़ सके शुरू-शुरू में बचा थूकेगा पर ऐसे ही सीखना शुरू करेगा। पूरक आहार न लेने से बच्चा इसी उम्र से कुपोषित होना शुरू हो जाता है। बच्चे को एनीमिया, विटामिन ए की कमी, जिंक की कमी हो सकती है।
यह होता है उचित पोषण
गर्भावस्था में आयरन व फोलिक एसिड से भरपूर भोजन, जो कि गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास व बढ़त के लिए जरूरी है।
6 माह के शिशु के लिए मां का दूध 6 माह तक बच्चे की सभी पोषक तत्वों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अत: 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिए।
6 माह से 2 साल की उम्र के दौरान फल, फलियां व प्रोटीनयुक्त पदार्थ जैसे अण्डा बच्चों को दिया जाना चाहिए जो कि उनके सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
गर्भावस्था के दौरान यह करें
गर्भावस्था की पहचान होने पर अतिशीघ्र निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर पंजीकरण करना।
नियमित जांच कराना।
पौष्टिक व संतुलित आहार का सेवन करना।
स्तनपान के संबध में उचित जानकारी प्राप्त करना।
चिकित्सक द्वारा दिए गए परामर्शों का पालन करना।
जन्म के 1 घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान कराना।
बच्चे को कोलोस्ट्रम को देना।
6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना।
6 माह के बाद ऊपरी आहार की शुरुआत करना।
शिशु व बच्चे का नियमित स्वास्थ्य जांच कराना।
शिशु व बच्चे का नियमित व समय से टीकाकरण कराना।
एक स्वस्थ पीढ़ी के लिए जीवन के पहले 1000 दिन के दौरान स्वास्थ देखभाल महत्वपूर्ण है।