लखनऊ। अब एसजीपीजीआई में पेट की बीमारी से ग्रसित मरीजों को सटीक इलाज मुहैया होगी। यहा एक ऐसी जांच की सुविधा है जो अभी तक देश के किसी भी चिकित्सा संस्थान में नहीं है यानि कि एसजीपीजीआई देश का पहला संस्थान है। गौरतलब है कि आंत की संवेदनशीलता में कमी होना या अधिकता होना दोनों से ही पेट की बीमारी होती है। अब इसका सटीक पता लगेगा। इसके लिए संस्थान में रैपिड बैरो स्टैट जांच शुरू किया है। इससे 30 से 40 फीसदी मरीजों को बीमारी का सटीक इलाज होगा। संस्थान के प्रो. राकेश कपूर ने कहा कि पेट की जटिल बीमारी के इलाज के लिए नई तकनीक देश में पहली बार स्थापित किया है।
प्रो. यूसी घोषाल ने शुरू किया जांच
इस जांच को गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के प्रो. यूसी घोषाल ने शुरू किया है। उन्होंने बताया कि हमारे आंत की चाल होती है वैसे ही आंत में संवेदन शीलता होती है। संवेदनशीलता की कमी या अधिकता के कारण कई तरह की परेशानी होती है। ऐसे में इस बीमारी से ग्रस्त लोगों का अभी तक अंदाजे से इलाज किया जाता था लेकिन इस जांच के जरिए संवेदनशीलता की सही जानकारी मिल सकेगी और सटीक इलाज हो सकेगा। यदि आंत की संवेदनशीलता में परेशानी होती है तो मरीज को पेट में दर्द, खाना पेट में अटका, मल त्याग करने की इच्छा नहीं होती या फिर पेट में भारीपन होता है।
यह हो जाता है
आंत में संवेदनशीलता के कारण होने वाली परेशानी को डॉक्टरी भाषा में इंस्टेस्टाइनल सूडो आब्सट्रेक्शन, हर्षप्रांग सिड्रोम सहित अन्य कहते हैं। इस नई जांच (रैपिड बैरो स्टैट) को 15 मरीजों पर आजमाया गया और इलाज शुरू किया गया। गौरतलब है कि मरीज कोलकता, आबू धाबी, केरला, मुंबई से इलाज के लिए भेजे गए थे। प्रो. घोषाल के मुताबिक सही समय पर सही इलाज न होने पर इंटेस्टाइनल फेल्योर हो जाता है जिसके कारण व्यक्ति खाना नहीं खा पाता है। इन परेशानियों के इलाज के लिए न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के लिए दी जाने वाली दवाएं दी जाती है।
ऐसे होती है जांच
जांच करते समय आंत में मशीन से जुड़े गुब्बारे को डाला जाता है। उसके बाद मशीन से इसे फुलाया जाता है इस दौरान तय मात्रा में ही प्रेशर दिया जाता है। प्रेशर को मरीज अनुभव करता है। संवेदनशीलता अधिक होने पर अधिक प्रेशर देने पर वह दर्द बताता है। कम होने पर कम प्रेशर पर ही दर्द बताता है। प्रेशर के आधार पर ऑटो जनरटेड ग्राफ मशीन देता है।