डेस्क। कोशिकाओं की अनियंत्रित और असामान्य वृद्धि को ही कैंसर अथवा कर्क रोग कहते हैं। यह असामान्य वृद्धि कई समस्याएं भी खड़ी करती है और जीवन के लिए खतरा बन जाती है जबकि कोशिकाओं की सामान्य वृद्धि से शरीर को कोई खतरा नहीं होता है। हम बात कर रहे हैं गले के कैंसर की।
गले में दो तरह का कैंसर होता है। स्वरयंत्र अथवा लेरिंस का कैंसर। कैंसर के कुल रोगियों में 13 प्रतिशत को गले का कैंसर है। औरतों के बजाय पुरुषों में यह चार गुना अधिक पाया जाता है। इस तरह के कैंसर में ट्यूमर अथवा रसौली श्वांस नलिका में स्थित स्वरयंत्र में होती है। इस कारण आवाज में बदलाव आ जाता है। गले में होने वाला दूसरा प्रमुख कैंसर है ग्रास नलिका अथवा ग्रसनी का। इसके अलावा टांसिल में भी कैंसर हो सकता है लेकिन इसका प्रतिशत बहुत कम है। भारत में गले के कैंसर के मामलों का प्रतिशत कुल कैंसर रोगियों का लगभग 12 फीसदी है जो कम नहीं कहा जा सकता। गले के कैंसर का शीघ्र पता चलने पर इलाज सफलतापूर्वक हो सकता है।
पहचानें लक्षण
गले के स्वरयंत्र के कैंसर में आवाज भारी हो जाती है। बाद में गले की लसिका ग्रथियों में सूजन भी आ सकती है। इसके अलावा सांस लेने एवं निगलने में तकलीफ भी होती है। साथ में खांसी आती है और खांसी के साथ रक्त मिश्रित बलगम आ सकता है। गले एवं कान में तीव्र दर्द होता है। जो कई बार साधारण दर्दनाशक दवाओं से ठीक नहीं होता। ग्रसनी के कैंसर का प्रमुख लक्षण निगलने में तकलीफ होना है। साथ ही इस तरह के कैंसर में भी स्वरयंत्र पर दबाव के कारण आवाज में बदलाव आ जाता है। बाद की स्थिति में रोगी को सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है।
निदान
बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण मिलने पर शीघ्र योग्य चिकित्सक से संपर्क करें। वह लेरिंगोस्कोपी, बायोप्सी आदि करके इस रोग की सही पहचान करेगा। आपको यह ध्यान रखना होगा कि कैंसर की पहचान जितनी जल्दी होगी, इलाज से फायदा भी उतना ही अधिक होगा। जरा सी भी शंका होने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।
इलाज
आजकल बहुत से कैंसर शीघ्र इलाज से ठीक हो जाते हैं और रोगी लंबी आयु तक जीवन जीता है, जैसे, गले में स्वरयंत्रा के कैंसर के शीघ्र निदान के बाद शल्य क्रिया कर दी जाए तो रोगी सामान्य आयु तक जिंदा रहता है। अब कैंसर के 80 से लेकर 90 प्रतिशत रोगियों का इलाज सफलतापूर्वक हो जाता है। शल्य क्रिया के अलावा विकिरण द्वारा भी इलाज करते हैं जिससे रोगी को फायदा होता है।
बचाव
खान-पान की कुछ आदतें बदल कर और तंबाकू का सेवन व हानिकारक नशे को छोड़कर इस रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है। तंबाकू का सेवन चाहे वह किसी भी रूप में हो, छोड़ देना चाहिए। इसके अलावा पान मसाले, कच्ची सुपारी आदि का प्रयोग भी बंद कर देना चाहिए। तंबाकू युक्त मंजन भी नहीं करना चाहिए। कैंसर से बचने के लिए शराब का सेवन भी छोडऩा उचित होगा। इसके अलावा बहुत ज्यादा मिर्च-मसालेयुक्त आहार रोज-रोज नहीं खाना चाहिए। 40 साल की उम्र के बाद हर दो साल पर शरीर की जांच करवाना भी कैंसर की रोकथाम में सहायक होता है।