लखनऊ। प्रदूषण की वजह से विश्व भर में दमा के मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो दुनिया भर में 235 मिलियन लोग दमा से प्रभावित है। विश्व के 10 प्रतिशत (लगभग 15-20 मिलियन) और भारत की कुल आबादी का लगभग 2 प्रतिशत आबादी दमे से पीडि़त है। 5 से 11 वर्ष की आयु के लगभग 10-15 फीसदी बच्चों में अस्थमा पाया जा रहा है।
ये हैं लक्षण
रोगी की श्वांस फूलना, खांसी आना, मरीज के सीने में कसाव व दर्द महसूस होना, बच्चों में अस्थमा का महत्वपूर्ण लक्षण सुबह या रात में खांसी/श्वांस फूलना/पसली चलना है, इलाज के बाद भी यदि खांसी/श्वांस फूलना लगातार बना रहे तो यह भी अस्थमा का लक्षण हो सकता है।
ये हैं कारण
अस्थमा की बीमारी मे फेफड़ों की श्वांस की नलियों मे सूजन आ जाती है। सूजन के कारण श्वास की नलियॉ सिकुड जाती है। अस्थमा के रोगियो के फेफड़े अतिसंवेदनशील होते है।
अस्थमा के अटैक के लिये जिम्मेदार कारक
परागकण, फंफूदी, धूल कण, ठंड/ठंडी हवा, तिलचट्टे, घर में साफ-सफाई के समय उडऩे वाले कण, घरों मे बिछाये जाने वालो गद्दों, सोफा, कार्पेट मे पाये जाने वाले किटाणु, पालतू जानवरों के स्पर्श (जानवरों के फर), सिगरेट का धुंआ, बचपन में बार-बार होने वाले श्वांस के संक्रमण, विभिन्न खाद्य पदार्थ, हवा का प्रदूषण, रसायनिक तत्वो/दवाईयों से सम्पर्क, भावनात्मक तनाव, कभी-कभी कुछ मरीजों में अत्याधिक व्यायाम अस्थमा के अटैक के कारण हो सकते हैं।
अतिसंवेदनशील फेफड़े उपरोक्त कारकों के सम्पर्क में आने से अस्थमा का अटैक होता हैै। उपरोक्त में से कोई भी कारण एलर्जी का कारण बन सकता है और यही एलर्जी दमा का कारण बनती है। कम वजन के पैदा होने वालो बच्चों, ऑपरेशन से होने वाले बच्चों में अस्थमा होने का खतरा कई गुना होता है। बड़ते हुए शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण से अस्थमा रोगों की संख्या बढ़ रही है।
ऐसा जरूर करें
एलर्जन के सम्पर्क में ना आने के लिये यथा सम्भव प्रयास किया जाना चाहिये। अस्थमा को पूरी तरह से ठीक नही किया जा सकता है। अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि सूजन कम करने वाली दवायें व श्वंास नलियों से फैलाने वाली दवाओं से अस्थमा पर नियंत्रण व अस्थता अटैक को रोका जा सकता है। दवांये श्वांस की नली की सिकुडऩ खत्म करने वाली दवाओं की तुलना मे अधिक कारगर है और इन्हे लम्बे समय तक इंहेलेशनल थिरेपी के रूप में लिया जा सकता है। आज के समय में इंहेलेशनल थिरेपी सबसे सुरक्षित एवं बेहतरीन तकनीकि है।
इस पर भी दें ध्यान
इनहेलर के प्रयोग के बाद रोगी को अपने मुंह को पानी से अच्छी तरह से साफ करना चाहिये। जिससे मुंह मे रह गयी दवा रोगी को नुकसान ना पहुंचा सके। नेबुलाइजर मशीन का प्रयोग केवल छोटे बच्चों अथवा गम्भीर रोगियों मे किया जाना चाहिये क्योकि नेबुलाइजर के नियमित प्रयोग से उसकी ट्यूब को साफ ना किया जाये तो इस स्थिति में संक्रमण का खतरा बना रहता है। डॉक्टरों द्वारा शुरू की गयी दवाइयों को अपने आप कम ना करे तथा निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करें।
यह विधा है कारगर
इम्यूनोथैरेपी भी एलर्जी के मरीजों का इलाज करने की अन्य विधा है । इम्यूनोथैरेपी मे अस्थमा करने वाले एलर्जन को बढ़ती हुई मात्रा में देकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है।