लखनऊ। पुरुषों में उम्र के साथ पेशाब के रास्ते में पाया जाने वाला प्रोस्टेट ग्लैण्ड बढ़ता जाता है और आगे चलकर एक बीमारी का रूप ले लेता है। इसे प्रोस्टेट बीमारी कहते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि के बढऩे पर बार-बार यूरीन करने की फिलिंग, यूरीन का जल्दी नहीं निकलना, कुछ देर से निकलना तथा यूरीन की धार पतली होना शमिल हैं। साथ ही धार का बीच-बीच में टूटना, यूरीन का रुक जाना और यूरीन करने में दर्द का अनुभव होना इसके लक्षण होते हैं। यह बात राम मनोहर लोहिया संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर आलोक श्रीवास्तव ने कही।
यह जरूर ध्यान देना
प्रो. आलोक ने बताया कि प्रोस्टेट आनुवांशिक कारणों से भी होता है। इसमें सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे लोगों को प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा 15-20 फीसदी तक बढ़ जाता है। ऐसे लोगों को सावधानी जरूर बरतनी चाहिए। 50 साल के उम्र या उससे अधिक उम्र के लोगों को सीरम पीएसए की जांच डॉक्टरों की सलाह लेकर करानी चाहिए। समय रहते इसका पता चल जाए तो इलाज पूरी तरह से संभव है।
किडनी पर पड़ता है असर
प्रोस्टेट ग्रंथि के बढऩे पर अगर यूरीन मूत्राशय के अंदर देर तक रुका रहता है तो कुछ समय के बाद किडनी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडऩे लगता है। इसके कारण किडनी की यूरीन बनाने की क्षमता कम होने लगती है और किडनी यूरिया को पूरी तरह शरीर के बाहर निकाल नहीं पाती। इन सब के कारण ब्लड में यूरिया बढऩे लगता है, जो शरीर के लिए नुकसानदेह होता है।
इलाज और बचाव
प्रोस्टेट ग्रंथि के बढऩे पर मरीज को चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है। यूरीन की थैली के लगातार भरे रहने से किडनी पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे किडनी के खराब होने का खतरा पैदा हो जाता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में दवाओं द्वारा ग्रंथि को बढऩे से रोकने का प्रयास किया जाता है। इससे बचने के लिए एक्सरसाइज करें, ऑयली चीजों का सेवन करने से बचें, शुगर और बीपी की जांच समय-समय पर कराते रहें।