लखनऊ। टीबी हमारे देश में तेजी से पांव पसार रहा है। टीबी की रोकथाम के लिए सरकार का प्रयास लगातार जारी है। एक टीबी का मरीज लापरवाही से रहता है तो वह साल भर में 15 नये टीबी के मरीज तैयार कर देता है। डब्ल्यूएचओ ने टीबी को 2030 में खत्म करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है। वहीं आईएमए ने इस लक्ष्य से पांच वर्ष पहले (2025) में मुक्त कर देने की ठानी है।
उक्त बातें बुधवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन-एकेडमी ऑफ मेडिकल स्पेशियलिस्ट्स (आईएमए-एएमएस) द्वारा आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में बतौर मुख्य अतिथि डॉ सूर्यकांत ने दी। उन्होंने कहा कि भारत में टीबी की भयावहता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रति डेढ़ मिनट में टीबी के एक रोगी की मौत हो रही है।
टीबी के नोटिफिकेशन को लेकर चिंता
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि सबसे ज्यादा चिंता टीबी के नोटिफिकेशन को लेकर है क्योंकि प्राइवेट चिकित्सकों, प्राइवेट अस्पतालों या किसी भी अन्य माध्यम से जो लोग टीबी का इलाज करा रहे हैं उनकी गिनती सरकारी आंकड़ों में होना आवश्यक है ताकि उनका पूरा इलाज होना सुनिश्चित किया जा सके। डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि होता यह है कि बहुत से मरीज टीबी का इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं, इससे टीबी की जो दवायें वे तब तक खा चुके होते हैं, उन दवाओं के प्रति वे रेसिस्ट हो जाते हैं, और फिर बाद में दोबारा इलाज शुरू होने पर वे दवायें उन्हें फायदा नहीं करती हैं। यही नहीं आंकड़े बताते हैं कि एक टीबी का मरीज अगर लापरवाही से रहता है तो वह 15 नये टीबी मरीज तैयार कर देता है।
ढाई लाख टीबी के मरीजों का कुछ पता नहीं
उन्होंने बताया कि एक साल पहले के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में साढ़े सात लाख टीबी के मरीज थे, इनमें ढाई लाख सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे थे, ढाई लाख मरीज ऐसे थे जो प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज करा रहे थे लेकिन सर्वाधिक चिंता की बात यह थी ढाई लाख टीबी के मरीजों का कुछ पता ही नहीं था कि वे किस हाल में हैं और कहां इलाज करा रहे हैं। ऐसे मरीजों से दूसरों को टीबी होने का सर्वाधिक खतरा है। इसलिए ऐसे मरीजों को ढूंढऩे के लिए 7 जनवरी से एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान के तहत स्लम एरिया में जाकर जांच कर टीबी के मरीजों का पता लगाया जा रहा है।
ये थे मौजूद
रिवर बैंक कॉलोनी स्थित आईएमए भवन में आयोजित सीएमई में एरा मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डब्ल्यूएचओ के डॉ. उमेश त्रिपाठी, आईएमए-एएमएस के उप्र. अध्यक्ष व स्टेट टीबी कंट्रोल प्रोग्राम के हेड डॉ. सूर्यकांत, आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डॉ. जीपी सिंह, आईएमए-एएमएस लखनऊ के अध्यक्ष डॉ. राकेश सिंह, सचिव डॉ. एचएस पाहवा आदि शामिल हुए।