लखनऊ। केजीएमयू में एक मरीज का इलाज करने में डॉक्टरों के पसीने छूट गए। जी हां यहां डॉक्टरों ने कौन से मरीज का उपचार किया उन्हें खुद ही नहीं मालूम पड़ पा रहा था। यह वाक्या केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में हुआ है। यहां बेड नम्बर सात पर भर्ती सांस के मरीज का इलाज चल रहा था।
ऐसा होता था
जुड़वा भाइयों में एक को सांस संबंधी बीमारी के बाद यहां भर्ती कराया गया था। हमशक्ल होने फायदा उठाकर मरीज उठकर अस्पताल के बाहर चला जाता था और सेहतमंद भाई मरीज के बेड पर लेट जाता था। ऑक्सीजन भी लगा लेता था। दवाएं खा लेता था। यही नहीं इंजेक्शन तक लगवाने से गुरेज नहीं करता था।
जब डॉक्टरों को जुड़वां भाइयों के असली-नकली का खेल पता चला तो उन्होंने इलाज करने से हाथ खड़े कर दिए। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मरीज को डिस्चार्ज किया जा सका।
दवाओं से बीमारी पर काबू पाया
मरीज चित्रकूट स्थित रसीम गांव के निवासी हैं। यहां के संतोष तिवारी के जुड़वां बेटे हैं। शंभू (35) और शंकर। दोनों की शक्ल, कद-काठी एकदम एक जैसी है। यहां तक कि दोनों के कपड़े, जूते और बाल खींचने का तरीका भी समान है। शंभू को सांस संबंधी बीमारी है। बीते 17 अक्टूबर को शंभू की तबीयत खराब हुई। सांस लेने में तकलीफ बढ़ गई थी।
जुड़वां भाई शंकर तड़के करीब साढ़े तीन बजे उन्हें लेकर केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग आए थे। यहां विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत की टीम ने मरीज को बेड नंबर सात पर भर्ती किया था। ऑक्सीजन से मरीज को सांसें दी गईं। दवाओं से बीमारी पर काबू पाया गया।
बोला मैं मरीज का जुड़वां भाई
बीमारी काबू में आने के बाद शाम को जब सीनियर रेजिडेंट डॉ. वकील अहमद, डॉ. अंकित और डॉ. शेखर वार्ड में आए तो उन्होंने देखा मरीज लेटा है। डॉक्टरों ने दवाएं देखीं। मरीज से उसकी सेहत का हाल पूछा। खून की जांच कराने की जरूरत बताई। इसी दौरान नर्स ने खून निकालने के लिए सिरिंज निकाली। सुई देख मरीज बेड से खड़ा हो गया।
ऑक्सीजन मॉस्क फेंक दिया। बोला मैं मरीज का जुड़वां भाई शंकर हूं। मरीज शंभू बाहर गया है। तब नर्स ने बताया कि यह तो सिरप और दवाएं खा चुका है। सुबह से ऑक्सीजन लगाकर लेटा है।
मरीज के रफूचक्कर होने पर खुली पोल
सुबह फिर असली मरीज बेड से रफूचक्कर हो गया। उसकी जगह नकली मरीज यानी भाई शंकर लेटा था। इसकी भनक लगने पर पैरामेडिकल स्टाफ ने दवाएं बेड से हटा लीं। बेड पर लेटे शंकर के चेहरे से मास्क हटा लिया। करीब डेढ़ घंटे बाद असली मरीज वापस आया। विभागाध्यक्ष की जानकारी के बाद पुलिस को मामले की सूचना दी।
पुलिस ने चित्रकूट थाने में फोनकर गांव से परिवारीजनों को बुलाया। उसके बाद ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे मरीज को रेफर किया गया।