लखनऊ। बाइपोलर ऐसी मानसिक बीमारी है जिसमें दिल और दिमाग लगातार कई हफ्तों तक या फिर कई महीनों तक या तो बहुत उदास रहता है या तो बहुत ही ज्यादा खुश रहता है। उदासी में बुरे-बुरे ख्याल तथा मेनिया में मन में ऊंचे-ऊंचे विचार आते हैं। बहुत तेजी बनाता है। इस बीमारी में काम में मन न लगना, हर 2 मिनट में खुश हो जाना या गुस्सा हो जाना, ज्यादा खर्च करना, इस तरह के लक्षण नजर आते हैं।
युवाओं पर पड़ रहा असर
यह बीमारी 100 लोगों में से एक व्यक्ति को जरूर होती है। इस बीमारी की शुरुआत 14 साल से लेकर 19 साल के अत्यधिक देखने को मिलती है। इस बीमारी में पुरुष तथा महिलाएं दोनों में प्रभावित होने के लक्षण पुरुष 60 प्रतिशत महिलाएं 40 प्रतिशत प्रभावित होते हैं। यह बीमारी 40 साल के ऊपर के लोगों में संभावना कम होती है। यह जानकारी डॉ. मोहम्मद अलीम सिद्दिकी ने शनिवार को कैसरबाग स्थित आईएमए भवन में विश्व बाइपोलर दिवस पर समारोह में दी।
बीमारी के रूप
बाईपोलर एक- इस प्रकार की बीमारी में कम से कम एक बार मरीज में अत्यधिक तेजी, अत्यधिक ऊर्जा, अत्यधिक उत्तेजना तथा ऊंची-ऊंची बाते करने का दौर आता है। इस तरह की तेजी लगभग 3-6 महीने तक रहती है। यदि इलाज ना किया जाये तो भी मरीज अपने आप ठीक हो सकता है। इस प्रकार की बीमारी का दूसरा रूप कभी भी मन में उदासी के रूप मे आ सकता है। उदासी लगातार दो हफ्ते से अधिक रहने पर इसे डिप्रेशन कहते हैं।
बाईपोलर दो – इस प्रकार की बीमारी में मरीज को बार बार उदासी (डिप्रेशन) का प्रभाव आता है। कभी कभार हल्की तेजी भी आ सकती है।
रैपिड साइलिक- इस प्रकार की बीमारी में मरीज को एक साल में कम से कम चार बार उदासी (डिप्रेशन) या मैनिया (तेजी) का असर आता है।
बीमारी के मुख्य कारण
इस बीमारी का मुख्य कारण सही रूप से बता पाना कठिन है। वैज्ञानिक समझते हैं कि कई बार शारीरिक रोग भी मन में उदासी तथा तेजी कर सकते हैं। कई बार अत्यधिक मानसिक तनाव इस बीमारी की शुरुआत कर सकता है।
बीमारी के लक्षण
एक रूप उदासी (डिप्रेशन) : इसमें मरीज के मन में अत्यधिक उदासी, कार्य में अरुचि, चिड़चिड़ापन, घबराहट, आत्मग्लानि, भविष्य के बारे में निराशा, शरीर में ऊर्जा की कमी, अपने आप से नफरत, नींद की कमी, सेक्स इच्छा की कमी, मन में रोने की इच्छा, आत्मविश्वास की कमी लगातार बनी रहती है। मन में आत्महत्या के विचार आते रहते हैं। मरीज की कार्य करने की क्षमता अत्यधिक कम हो जाती है। कभी-कभी मरीज का बाहर निकलने का मन नहीं करता है। किसी से बातें करने का मन नहीं करता। इस प्रकार की उदासी जब दो हफ्तों से अधिक रहे तब इसे बीमारी समझकर परामर्श लेना चाहिये।
दूसरा रूप ‘मैनियाÓ या मन में तेजी के लक्षण : इस प्रकार के रूप में मरीज के लक्षण कई बार इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि मरीज का वास्तविकता से सम्बन्ध टूट जाता है। मरीज को बिना किसी कारण कानों में आवाजें आने लगती है। मरीज अपने आपको बहुत बड़ा समझने लगता है। मरीज मन में अत्यधिक तेजी के कारण इधर उधर भागता रहता है, नींद तथा भूख कम हो जाती है।
यह खास बात
मरीज अक्सर उदासी (डिप्रेशन) के बाद सामान्य हो जाता है। इसी प्रकार तेजी (मैनिया) के बाद भी सामान्य हो जाता है। मरीज काफ़ी समय तक, सालों तक सामान्य रह सकता है तथा अचानक उसे उदासी या तेजी की बीमारी आ सकती है।
इलाज
मरीज के मन को सामान्य रूप में रखना
इलाज के द्वारा मरीज को होने वाले मैनिक तथा उदासी को रोकना। मन को सामान्य रखने के लिये कई प्रभावशाली दवाएं उपलब्ध हैं। इस प्रकार की दवा को ‘मूड स्टैवलाइजिंगÓ दवा कहते हैं। इसमें ‘लीथियमÓ नामक दवा काफी प्रभावकारी तथा लाभकारी है। इस दवा का प्रयोग करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे मरीज को नियमित रूप से अपने रक्त की जांच कराते रहना चाहिये। मरीज को यदि गर्मी में पसीना आये तब पानी का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
मरीज को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब एक बार लीथियम शुरू करते हैं तो इसे लगातार लम्बे समय तक लेना चाहिये तथा बिना डाक्टर की सलाह के अचानक इसे बन्द नहीं करना चाहिए। लीथियम को मानसिक डॉक्टर के द्वारा ही शुरू किया जाना चाहिये। रक्त में लीथियम की जांच के द्वारा दवा की खुराक मानसिक चिकित्सक के द्वारा निर्धारित की जाती है।
दूसरे मूड स्टैबलाइजर
लीथियम के अतिरिक्त सोडियम वैल्प्रोएट भी ‘मूड स्टैबलाइजरÓ के रूप में काफी प्रभावकारी व लाभदायक है। इसके अतिरिक्त ‘कारबामेजेपीनÓ भी लाभदायक है। इसका प्रभाव ‘लीथियमÓ से कम पाया गया है। कभी-कभी मरीज को एक से अधिक भी ‘मूड स्टैबलाइजरÓ आवश्यकता पड़ सकती है। मूड स्टैबलाइजर शुरू करने से पहले अपने मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिये। किस मरीज को कौन सा ‘मूड स्टैबलाइजरÓ प्रयोग करना है यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय होता है।
दवाओं का प्रयोग लाभकारी
यदि मरीज इन दवाओं का प्रयोग करता है तो उसको मैनिया या डिप्रेशन की बीमारी होने की संभावना 30 से 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है। दवा मैनिया तथा डिप्रेशन को रोकने मे कितना प्रभावशाली होगी यह काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करता है कि मरीज को अब तक कितनी बार मैनिया तथा डिप्रेशन की बीमारी हो चुकी है। जैसे-जैसे मरीज को बार-बार मैनिया की बीमारी होती जाती है वैसे-वैसे दवा का प्रभाव भी कम हो सकता है।
… तो दोबारा हो जाएगी बीमारी
प्रमाण बताते हैं कि यदि किसी मरीज को 5 से अधिक बार मैनिया की बीमारी हो चुकी है तो 40 प्रतिशत खतरा होता है कि मरीज के मैनिया की बीमारी दोबारा से एक साल के अन्दर फिर हो जायेगी। यदि मरीज लीथियम लेता रहता है तब यह खतरा केवल 28 प्रतिशत रह जाता है। इसलिये मरीज को ‘मूड स्टैबलाइजिगÓ दवा अक्सर पहली बार मैनिक बीमारी के बाद ही शुरु कर देना चाहिये। यदि किसी को मैनिया की बीमारी दो बार हो चुकी है तब इसकी फिर से होने की संभावना 80 प्रतिशत रहती है।
मरीज को ‘मूड स्टैबलाइजरÓ शुरू करने के बाद इसे कम से कम दो साल तक लेना चाहिये। कुछ मरीजों को यह दवा 5 साल तक या और भी अधिक लम्बे समय तक लेना पड़ता है। यह काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज को अब तक कितनी बार मैनिया या डिप्रेशन की बीमारी हो चुकी है।
मूड स्टैबलाइजर के अतिरिक्त साइकोलाजिकल इलाज भी लाभदायक हो सकता है। इसके इलाज में मरीज को बीमारी के बारे मे जानकारी, मन के अन्दर उदासी व तेजी को पहचानना तथा उसको सामान्य रखने के उपाय सिखाये जाते हैं।
गर्भवती : औरत को सावधानी के रूप में अपने मनोचिकित्सक से पहले से परामर्श लेना चाहिए। गर्भवती औरत मे लीथियम जैसी दवा पहले तीन महीने मे बच्चे को हानिकारक प्रभाव पहुंचा सकती है। यह दवा अक्सर शुरू के 6 महीने गर्भवती औरत को नहीं लेनी चाहिये।
बीमारी के दूसरे रूप मैनिया या डिप्रेशन का इलाज
डिप्रेशन : इसके इलाज के लिये ऐन्टीडिप्रेसेन्ट अक्सर मूड स्टैबलाइजर के साथ दी जानी चाहिए। आज कल सबसे अधिक सिरोटिन नामक कैमिकल को प्रभावित करने वाले ऐन्टीडिप्रेसेन्ट प्रयोग किये जाते हैं। ऐन्टीडिप्रेसेन्ट, शुरु के एक से दो हफ्तों मे प्रभावशाली नहीं होते। जब मरीज इस दवा से लाभ पाने लगे तो इस दवा को लेते रहना चाहियें। इसे बंद न कर दें। यदि मरीज को बार बार डिप्रेशन की बीमारी होती है तथा मैनिया कम होता है तो मरीज को डिप्रेशन ठीक होने के बाद भी मूड स्टैबलाइजर के साथ ऐन्टीडिप्रेसेन्ट लेते रहना चाहिये। ऐन्टीडिप्रेसेन्ट डिप्रेशन ठीक होने के बाद कब बंद करना है, इसके लिये मरीज को अपने मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चहिये।
मैनिक बीमारी का इलाज : यदि मरीज को मैनिक बीमारी तब होती है जब मरीज ऐन्टीडिप्रेसेन्ट ले रहा है तो उसे ऐन्टीडिप्रेसेन्ट बन्द कर देनी चहिये। मरीज के इलाज के लिए मूड स्टैबलाइजर या ऐन्टीसाइकोटिक को प्रयोग मे लाया जाता है। कुछ मरीजों को मूड स्टैबलाइजर व ऐटिपिकल ऐन्टीसाइकोटिक दोनों को एक साथ दिया जाता है। इसके कुछ महीनों बाद ऐन्टीसाइकोटिक को बंद कर दिया जाता है तथा मरीज को ठीक होने के बाद भी मूड स्टैबलाइजर लेते रहना चाहिए। मरीज को दवा लेते समय इसका ध्यान रखना चाहिये कि दवा के कारण उसकी कार चलाने कि क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसके लिये अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
मरीज ऐसा करें
मरीज को अपने मूड पर ध्यान रखना चाहिये। यदि मन में अधिक उदासी या तेजी आये तो तुरन्त डाक्टर से सलाह लेनी चाहिये ताकि बीमारी को जल्द से जल्द रोका जा सके। मरीज को अपने दोस्तों से तथा परि वार वालों से अपने सम्बन्ध बनाकर रखने चाहिये तथा सम्बंधों का लाभ उठाना चाहिये। इस प्रकार के सम्बन्धों का मानसिक स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मरीज को शारीरिक अभ्यास करते रहना चाहिये। अपने आपको कार्य में व्यस्त रखना चाहिये। मरीज को जिस काम में खुशी मिलती है उसे करते रहना चाहिये।