लखनऊ। भारत में एक तिहाई लोग यह जानते ही नहीं कि उन्हें बीपी की समस्या है। इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन लोग नपवाते ही नहीं है। लोग बीपी जरूर चेक करवाएं। भारत में 33 फीसदी लोग बीपी की समस्या से ग्रसित हैं। इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ हाईपरटेंशन ने तय किया कि हर वर्ष मई के महीने में लोगों को जागरूक करने के लिए एक कार्यक्रम चलाया जायेगा। इस कार्यक्रम को ‘May Measurement Month’ (एमएमएम) का नाम दिया गया है। यह बात आईएमए भवन में एक कार्यक्रम के दौरान केजीएमयू के प्रो. डॉ. सूर्यकांत ने कही।
महपौर ने किया कार्यक्रम का शुभारंभ
मंगलवार को इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन, इण्डियन सोसाएटी ऑफ हाईपरटेंशन और आईएमए एकाडमी ऑफ मेडिकल स्पेशियलिस्ट ऑफ के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस दौरान महापौर संयुक्ता भाटिया, डॉ. एचएस पहवा, डॉ. राकेश सिंह, डॉ. सूर्यकांत, अनुज महेश्वरी, डॉ. नर सिंह वर्मा मौजूद थे।
इतने डाटा एकत्र किया
कार्यक्रम में शामिल डॉ. अनुज ने कहा कि 2017 में हमने 52380 डाटा एकत्र किया था। वहीं 2018-19 में एक लाख 84 हजार डाटा एकत्र किया है। लखनऊ की बात करें तो छह हजार से ज्यादा डाटा हाईपर टेंशन का एकत्र किया जा चुका है। यह डाटा 15000 तक एकत्र करने का लक्ष्य है।
बीपी कोई बीमारी नहीं
डॉ. नर सिंह वर्मा ने कहा कि बीपी कोई बीमारी नहीं है, बस लोगों के मन में ऐसा होता है कि वो बीमार हैं। बीपी सामान्य भी हो सकता है और कम भी इसके अलावा सामन्य से ज्यादा भी हो सकता है। अगर बीपी सामान्य से ज्यादा है तो हाईपरटेंशन है। इस बात का ध्यान रखना होता है कि एक बार में ही हाईपरटेंशन को नहीं बताया जा सकता है।
ऐसे दिखाएं डॉक्टर को
डॉ. नर सिंह वर्मा ने कहा कि मई के महीने में उन लोगों का बीपी नापा जा रहा है जिनका इसके पहले नापा नहीं गया है। इससे नए रोगियों की पहचान होगी और यह जान पाएंगे कि कितने मरीज हाईपरटेंशन के मिले हैं। एक सप्ताह तक खुद आप बीपी को चेक करें। इसके बाद एक सप्ताह की रिपोर्ट डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर यह तय करेगा कि क्या आपको वास्तव मेें हाईपरटेंशन है। उन्होंने कहा कि छह माह में एक बार जरूर बीपी नपवाना चाहिए।