लखनऊ। स्कूली बच्चों में बस्ते के बोझ और कई अन्य कारणों से बढ़ रहे मानसिक तनाव के मद्देनजर सरकार ने जागरुकता के लिए अभियान चला रखा है। अब इसके तहत बच्चों के माता-पिता और स्कूली शिक्षकों को भी सजग किया जा रहा है। इसी क्रम में विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरुकता सप्ताह के तीसरे दिन बुधवार को जिले के सरकारी व प्राइवेट स्कूलों के नोडल शिक्षकों के लिये जागरुकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसका आयोजन मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय के सभागार में किया गया। जिसमें उनसे उन बच्चों को चिन्हित करने का लक्ष्य और प्रशिक्षण दिया गया जो मानसिक तनाव की समस्या से जूझ रहे हैं।
मोबाइल व लैपटॉप से बन रही दूरी
इस क्रम में कार्यशाला को सीएमओ डॉ. नरेंद्र अग्रवाल ने अनेक सुझाव दिए और कहा कि बहुत सारे अभिभावकों को यह नहीं पता कि उनका बच्चा किस तनाव से गुजर रहा है। इसका मुख्य कारण आज की वर्तमान जीवन शैली व वर्तमान समाज है। वयस्कों के साथ-साथ बच्चे भी इससे ग्रसित हो रहे हैं। बच्चे अपना ज्यादा से ज्यादा समय टीबी, मोबाइल व लैपटॉप पर व्यतीत करते हैं जिसका परिणाम होता है कि बच्चे व माता-पिता के बीच दूरी बन जाती है और ऐसी स्थिति बन जाती है कि बच्चा आत्महत्या कर लेता है।
43 जिलों में नियुक्तियां
राज्य स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुनील पांडे ने बताया कि यह कार्यक्रम प्रदेश के सभी जिलों में चल रहा है। 43 जिलों में इससे सम्बधित नियुक्तियां हो चुकी हैं और 32 जनपदों में होना बाकी हैं। नोडल शिक्षकों की यह कार्यशाला सभी जनपदों में आयोजित की जायेगी। विभाग द्वारा इस सम्बन्ध में आदेश पारित किया जा चुका है। लखनऊ में लगभग 1600 सरकारी व 1000 प्राइवेट स्कूल हैं। आज यह पहला चरण है। डा. पांडे ने बताया कि पिछले वर्ष कुछ जिलों में कक्षा के मॉनिटर के समान कक्षा में विद्यार्थियों के बीच मन दूत व मन परी को बनाया गया था जो कि बच्चों के मानसिक व्यवहार पर उनसे बात करते थे। यह कार्यक्रम सफल हुआ है अब इसे पूरे राज्य में लागू करने की बात चल रही है।
शिक्षकों की है जिम्मेदारी
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के निदेशक डॉ. आलोक कुमार ने कहा कि भौतिक सुखों से हम स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं। यह भी तनाव का एक प्रमुख कारण है जिससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। बच्चे अपना 7-8 घण्टे स्कूल में बिताते हैं। अत: शिक्षकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारें।
ये हैं कारण
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. पी.के. दलाल ने बताया कि आज बहुत से बच्चों में हमें तनाव की समस्या देखने को मिलती है। इसका कारण कहीं और नहीं हमारे ही आस-पास है और इसका निराकरण भी हमारे ही पास है। अनियमित एवं बदलती जीवन शैली, जंक फूड का सेवन, व्यायाम की कमी, टीबी के सामने देर तक बैठना, मोबाइल देखना, आउटडोर एक्टिविटी का अभाव यह ऐसे कारण हैं जो कि तनाव या स्ट्रैस को जन्म देते हैं।
भ्रांतियां भी होंगी दूर
किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक रोग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एससी तिवारी ने बताया मानसिक विकारों को लेकर हमारे समाज में भ्रांतियां फैली हैं। इन्हें दूर करने के उद्देश्य से ही यह मानसिक स्वास्थ्य जागरुकता सप्ताह मनाया जाता है। इस अवसर पर राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल व अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. आरके चौधरी, उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. जीके बाजपेयी, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अजय राजा, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. एके दीक्षित व जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी योगेश रघुवंशी उपस्थित थे। कार्यशाला में डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव द्वारा मेन्टल हेल्थ फस्र्ट एड, डॉ. डेविस इब्राहम द्वारा लाइफ स्किल्स फॉर टींस तथा डॉ. सुनील पांडे द्वारा स्ट्रेस मैनेजमेंट पर शिक्षकों को जानकारी दी।