अस्थमा से पीडि़त मरीजों को काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। यह बीमारी तब होती है जब श्वास नलिकाओं में सूजन आ जाती हैं। सूजन के आने से एलर्जी हो जाती है। इससे सांस की नलिकाएं सिकुड़ जातीं हैं और बलगम भी जमता है। मरीज को सांस लेने में ज्यादा तकलीफ होती है। इस स्थिति में मरीज मुंह से सांस लेता है। अनिद्रा की भी शिकायत होती है। सीने पर दबाव और भारीपन महसूस होता है।
फेफड़े से सीटी बजती
अस्थमा के मरीज में फेफड़े से सीटी बजती है। अस्थमा में सीने पर दबाव, भारीपन महसूस होता है। मरीज की सांस तेज चलने की शिकायत भी होती है। मरीज के फेफड़ों से सीटी जैसी आवाज भी आती है। मरीज को सांस की तकलीफ रात में ज्यादा होती है। अक्सर एलर्जी की समस्या परागकणों से ही होती है। परागकणों के संपर्क में आने से दिक्कत बढ़ती है।
दो तरह की होती है एलर्जी
एलर्जी दो तरह की होती है। पहली तरह की एलर्जी की समस्या हमेशा बनी रहती है। सालभर रहने वाली एलर्जी की वजह धूल के कण होते हैं। दूसरी तरह की एलर्जी मौसम बदलने के कारण होती है। मरीज को जुकाम, खांसी आदि की समस्याएं बढ़ जाती हैं। मौसम में बदलाव से एलर्जी की वजह परागकण होते हैं। मौसम बदलने के साथ सर्दी बढ़ने से भी अस्थमा अटैक होता है। अटैक में कई बार मरीज को ऑक्सीजन की भी जरूरत पड़ती है। घरों की सफाई में निकले धूल के कणों से अस्थमा होता है।
एलर्जी व अस्थमा के कारण
गर्भवती को अस्थमा है तो बच्चे में भी होने का खतरा होता है। सामान्य प्रसव में एलर्जीरोधी तत्व बच्चे में ट्रांसफर होते हैं। ये तरल बच्चे में एलर्जी से लड़ने की ताकत बढ़ाते हैं। बचपन से जिस वातावरण में रहे हैं, वह भी कारण होता है।
गांव के बच्चों में एलर्जी की समस्या कम
गांवों के बच्चों में एलर्जी की समस्या कम होती है। क्योंकि मिट्टी में खेलने से बच्चे की इम्युनिटी मजबूत होती है। धूम्रपान करने वालों के पास रहने—बैठने से अस्थमा की आशंका बढ़ती है। पैसिव स्मोकिंग से भी अस्थमा अटैक आ सकता है।
ऐसे करते अस्थमा की पहचान
अस्थमा की पहचान फेफड़ों की स्पाइरोमीटरी टेस्ट करते हैं। एलर्जी टेस्ट से मरीज को किन चीजों से परेशानी की पहचान करते हैं। एलर्जी टेस्ट त्वचा पर सुई चुभोकर, खून जांच से करते करते हैं। एलर्जी के मरीजा का इलाज इम्युनोथैरेपी से किया जाता है।मरीज को जिनसे एलर्जी है उनकी थोड़ी मात्रा उसे देते हैं। एलर्जी के अंश शरीर में रिएक्शन का खतरा कम करते हैं
ऐसे बच सकते हैं अस्थमा से
अस्थमा के मरीज को हमेशा इनहेलर साथ रखना चाहिए। अस्थमा अटैक में अचानक तेज सांस चलती, खांसी उठती है। ऑक्सीजन की कमी से हार्ट रेट बढ़ती व बीपी कम हो जाता है। अस्थमा अटैक में मरीज को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। अस्थमा के मरीज को कारणों से बचाव पर ध्यान देना चाहिए। उन दवाओं, खाद्य पदार्थों, चीजों से दूर रहें जिनसे एलर्जी है। पूर्ण इलाज लें, नियमित व्यायाम व स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
अस्थमा से बचाव के देसी नुस्खे
आंवला पाउडर और शहद मिलाकर लेना अस्थमा में फायदेमंद है। शहद सूंघने से दमा के रोगी को सांस लेने में आसानी होती है। सरसों तेल में कर्पूर मिलाकर गर्म करें व सीने-पीठ पर लगाएं। लहसुन की कली को दूध में उबालकर पीना फायदेमंद माना जाता है। गाय के दूध में एक चुटकी हल्दी मिलाकर पीना लाभकारी है। सुबह खाली पेट एक गिलास पानी में 30 ML एलोवेरा पीते हैं।
अस्थमा का होम्योपैथी में इलाज
होम्योपैथी में अस्थमा का इलाज लक्षणों के आधार पर करते हैं। होम्योपैथी में मरीज पर दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। होम्योपैथी में उपचार लेते समय व्यायाम की सलाह देते हैं।