लखनऊ। ग्लूकोमा को हिन्दी में काला मोतिया भी कहते हैं। यह आंखों में होने वाली एक गंभीर समस्या है तथा अंधेपन के प्रमुख कारणों में से एक है। हमारी आंख एक गुब्बारे की तरह होती है जिसके भीतर एक तरल पदार्थ भरा होता है। यह तरल पदार्थ निरंतर बनता रहता है और बाहर निकलता रहता है। आंखों के इस तरल पदार्थ के पैदा होने और बाहर निकालने कि प्रक्रिया में जब कोई समस्या आती है तब आंखों में दबाव बढ़ जाता है।
ओप्टिक नव्र्स को पहुंचता है नुकसान
आंखों में एक ओप्टिक नर्व होती है जो किसी भी वस्तु का चित्र दिमाग तक पहुंचाती है। ग्लूकोमा होने पर हमारी आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। लगातार बढ़ते दबाव के कारण इन ओप्टिक नव्र्स को नुकसान पहुंचता है और आंखें कमजोर होने लगती हैं। अगर इसके शुरुआती लक्षणों का पता नहीं चलता है तो आदमी की आंखें जा सकती हैं।
ग्लूकोमा 2 प्रकार का होता है
ओपेन एंगल ग्लूकोमा व क्लोज एंगल ग्लूकोमा। जब कभी आंखों में प्रेशर बढ़ता है तब ओप्टिक नर्व खराब हो जाती है और उसके चलते नजर खराब होती है तब इस स्थिति को ओपन एंगल ग्लूकोमा कहते हैं। क्लोज एंगल ग्लूकोमा में एक्वस ह्यूमर (एक प्रकार का तरल पदार्थ जो कि आंखों को पोषण देता है) का प्रवाह रुक जाता है। तेज सिरदर्द, दिखाई देना बंद होना, आंखें लाल होना, उल्टी और चक्कर आना व धुंधलापन आने की शिकायत होती है और यदि इसका सही से इलाज न हो तो एंगल्स पूरी तरह से बंद हो जाते हैं।
ग्लूकोमा के लक्षण
ओपेन एंगल ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं होते हैं। इसमें न ही दर्द होता है और न ही नजर में कोई कमी महसूस होती है। इसके लक्षण हो सकते हैं कि चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव हो, सिरदर्द और हल्के चक्कर आना, पूरे दिन के काम के बाद शाम को आंख या सिर में दर्द हो, बल्ब के चारों ओर इंद्रधनुषी रंग दिखाई दे, अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर फोकस करने में परेशानी हो व साइड विजन को नुकसान होता है बाकी विजन सामान्य बना रहता है।
आंखों की करवानी चाहिए जांच
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. पूजा कनोडिया ने बताया कि ग्लूकोमा एक ऐसी समस्या है जिसके बारे में समय से पता चलना बहुत जरूरी है इसलिए 40 वर्ष कि उम्र के बाद नियमित रूप से आंखों की विशेष जांच करवानी चाहिए। जैसा कि कहा जाता है इलाज से बेहतर रोकथाम है।