लखनऊ। वायरल बुखार में होम्योपैथिक दवाइयां काफी लाभकारी सिद्ध होती हैं। आवश्यकता है रोगी के सम्पूर्ण लक्षणों के आधार पर औषधि देने की। होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग अपने आप बिना चिकित्सक के परामर्श के नहीं करना चाहिए।
वायरल फीवर के उपचार में प्रयोग होने वाली होम्योपैथिक औषधियों में एकोनाइट, एलियम सीपा, बेलाडोना, युफ्रेशिया, जेल्सिमियम, आर्सेनिक, रसटॅाक्स, चायना, यूपेटोरियम पर्फ, इन्फ्ल्यूजिनम, डल्कामारा आदि प्रमुख है। उक्त बातें डॉ. अनुरूद्ध वर्मा ने कही।
बदलते मौसम में यह बुखार तेजी से फैलता है
वायरस आंखों से नहीं दिखने वाला विषाणु है जो वातावरण में विद्यमान रहते हैं और अवसर पाते ही हमारे शरीर पर आक्रमण कर देते हैं। वैसे तो वायरल फीवर किसी भी उम्र में हो सकता है परन्तु यह बच्चों में इसकी संभावना ज्यादा है। यह किसी भी मौसम में हो सकता है परन्तु बरसात के दिनों एवं बदलते मौसम में यह बुखार बहुत तेजी से फैलता है और दूसरे लोगों को भी संक्रमित कर सकता है। वायरल बुखार 3 से 7 दिन का समय लेता है लेकिन यह अवधि दो सप्ताह तक की भी हो सकती है।
यह होता है
वायरल बुखार में 101 से 104 डिग्री तक बुखार हो सकता है। यह बुखार अचानक बढ़ सकता है, समान्यत: लगातार बुखार रहता है और कभी-कभी दिन में एक दो बार बुखार तेज हो जाता है। बुखार से पहले छींक आना, बलगम, नाक बहना आदि लक्षण होते हैं।
ऐसे बचें
बच्चों को सही समय पर मम्स, खसरा, पोलियो आदि के टीके लगवाने चाहिए।
बच्चों को प्रारम्भ से ही स्तनपान कराना चाहिए।
कुपोषण से बचाने के लिये संतुलित आहार सुनिश्चित करना चाहिए।
भीड़-भाड़, मेले बाजार आदि में जाने से बचना चाहिए।
व्यक्तिगत सफाई तथा आस-पास की सफाई पर ध्यान देना चाहिए।
घर के अंदर के प्रदूषण जैसे धुआं, सिगरेट, बीड़ी के धुएं से बचना चाहिए।
रोगी को व्यक्तिगत संपर्क से बचना चाहिए।
वायरल बुखार के लक्षण
शरीर में दर्द, सिर दर्द, थकावट, ठंड लगना, कमजोरी, भूख न लगना, गले में खरास एवं मिचली के लक्षण हो सकते है।
रोगी की कुछ करने की इच्छा नहीं रहती है।
रोगी को सूखी खांसी भी हो सकती है।
रोगी का चेहरा मुरझाया सा भी रहता है।
रोगी में बेचैनी भी रहती है तथा वह सुस्त भी रहता है।
रोगी की आवाज में कुछ परिवर्तन भी हो सकता है।