लखनऊ। स्वाइन फ्लू के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए स्वास्थ्य अमला लगातार प्रायस कर रहा है। स्वाइन फ्लू का होम्योपैथी में उपचार संभव है। स्वाइन फ्लू का संक्रमण किसी स्वाइन फ्लू के रोगी के सम्पर्क में आने पर होता है। यह रोगी व्यक्ति से हाथ मिलाने, खांसने, छीकने या सामने से या नजदीक से बात करने से होता है। केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद के सदस्य डॉ. अनुरूद्ध वर्मा ने सोमवार को बताया कि स्वाइन फ्लू का वायरस श्वसन-तंत्र के रास्ते से शरीर में प्रवेश कर जाता है, जिसके कारण स्वाइन फ्लू की बीमारी हो जाती है।
ऐसे लोग करें बचाव
डॉ. वर्मा ने बताया कि वैसे तो स्वाइन फ्लू भी वायरस जनित रोग है लेकिन हर फ्लू स्वाइन फ्लू नहीं होता है इसलिये घबराने की जरूरत नहीं है। स्वाइन फ्लू से बचाव एवं उपचार पूरी तरह संभव है पर सतर्क एवं सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी एच1 एन1 वायरस के कारण फैलती है और गर्भवती महिलायें, बच्चे, वृद्ध, डायबिटीज रोगी, एचआईवी रोगी, दमा के रोगी व्रांकाइटिस के रोगी, नशे के लती, कुपोषण, एनीमिया व अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोग इस वायरस के चपेट में आसानी से आ जाते हैं, क्योंकि उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है।
स्वाइन फ्लू बीमारी के लक्षण
स्वाइन फ्लू बीमारी के लक्षण सामान्य इन्फ्ल्युंजा की तरह है, इसमें तेज बुखार, सुस्ती, सांस लेने में परेशानी, सीने में दर्द, रक्त चाप गिरना, खांसी के साथ खून या बलगम, नाखूनों का रंग नीला हो जाना आदि लक्षण हो सकते हैं। यदि इस प्रकार के लक्षण मिलें तो स्वाइन फ्लू की जांच कराकर उपचार कराना चाहिये।
होम्योपैथिक में है स्वाइन फ्लू का उपचार
डॉ. अनुरूद्ध वर्मा ने बताया कि स्वाइन फ्लू का उपचार एलोपैथिक पद्धति के माध्यम से किया जा रहा है लेकिन होम्योपैथी में जब रोग फैल रहा होता है और जिस प्रकार के लक्षण ज्यादातर रोगियों में मिलते हैं उसी को ध्यान में रखकर जीनस इपिडिमकस का निर्धारण कर बचाव के लिये होम्योपैथिक औषधि का चयन किया जाता है। इसके बचाव में आर्सेनिक एल्बम 200 शक्ति एवं इन्फ्युजिंनम की औषधि का प्रयोग कारगर साबित हो सकता है परन्तु औषधियां चिकित्सक की सलाह पर ही लेना चाहिए। होम्योपैथी में रोगी के लक्षणों के आधार पर औषधि का चयन किया जाता है। हर रोगी की दवा अलग-अलग होती है इसलिये प्रशिक्षित होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह पर ही होम्योपैथिक औषधि का प्रयोग करना चाहिये।
क्या करें क्या न करें
खांसते या छीकतें समय मुंह पर हाथ या रूमाल रखें। खाने से पहले साबुन से हाथ धोयें।मास्क पहन कर ही मरीज के पास जायें। साफ रूमाल में मुंह ढके रहें। खूब पानी पियें व पोषण युक्त भोजन करें। मरीज से कम से कम एक हाथ दूर रहें। भीड़-भाड़ इलाकों में न जाये। साफ-सफाई पर विशेष ध्यान रखें। यदि लक्षण दिखें तो तुरन्त चिकित्सक से सलाह लें।