आज हम आपको प्रीमैच्योर बच्चे के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। मा-पिता अपने बच्चे की देखभाल कैसे करें। इसलिए आपको प्रीमैच्योर बेबी की देखभाल के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। सामान्य गर्भावस्था काल 40 सप्ताह का माना जाता है। इस समय पैदा होने वाले बच्चों को फुल टर्म यानि सामान्य माना जाता हैं। वहीं 37 सप्ताह से पहले जन्मे बच्चे को प्रीटर्म बेबी या प्रीमैच्योर बेबी माना जाता है।
वातावरण में थोड़ा बदलाव
अक्सर देखने में आता है कि आप प्रीमैच्योर बेबी के माता-पिता होने पर उसकी देखभाल काे लेकर ज्यादा परेशान रहते हैं। लेकिन असल में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि प्रीटरम शिशुओं की देखभाल सामान्य शिशुओं की देखभाल से अलग नहीं है। आपको बस बच्चे के आस-पास के वातावरण में थोड़ा बदलाव करना होगा और कुछ सुझावों का पालन करना होगा ताकि आपके बच्चे की सेहत बनी रहे। आइए जानते हैं उनके बारे में :-
सही तापमान
आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आपका बच्चा आरामदायक और सुरक्षित तापमान पर है। ऐसा करने का सबसे प्रभावी तरीका कपड़ों की परतों को जोड़ना या आवश्यक होने पर उन्हें निकालना है।कंबल के साथ बिस्तर को ना मिलाएं क्योंकि यह बच्चे के तापमान का अधिक बढ़ा सकता है। एक डिजिटल थर्मामीटर खरीदें और बच्चे का तापमान 36.5-37.3 C (97.6-99.1 F) बनाए रखें। आदर्श कमरे का तापमान 20-23 C होना चाहिए।
अपने बच्चे को सोने में मदद करना
आप शांत वातावरण और मंद प्रकाश जैसे, सही वातावरण सेट करके अपने बच्चे को बेहतर नींद में मदद कर सकते हैं। प्रीटरम शिशुओं को अन्य शिशुओं की तुलना में रात में अधिक भूख लगती है, क्योंकि बच्चा जितना छोटा होता है, उतनी बार उसे खिलाने की जरूरत होती है।
बच्चे को सुरक्षित रूप से नहलाना
पानी बहुत गर्म न हाेकर गुनगुना होना चाहिए। बच्चे के बाल धाेने के लिए सादा पानी ही इस्तेमाल करें। नहाने के पानी में कोई भी तरल क्लींजर न डालें। बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम तक पहुंचने तक स्पंज स्नान दें। किसी भी लोशन या तेल का उपयोग करने से बचें, जब तक कि आपका बच्चा कम से कम एक महीने का न हो जाए।
सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम की रोकथाम (SIDS)
यह एक सिंड्रोम है जिसमें साेते समय बच्चे की माैत हाेने का खतरा रहता है। आमतौर पर जीवन के पहले 6 महीनों में। सामान्य ताैर पर जन्मे बच्चाें की तुलना में समयपूर्व जन्मे बच्चों में इसका खतरा अधिक रहता है। यह अभी भी ज्ञात नहीं है कि SIDS किस कारण से होता है, लेकिन निम्नलिखित उपाय SIDS को रोकने में मदद करते हैं, जैसे:-
– कभी भी बच्चे को पेट के बल न साेने दें। यह शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि इससे सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
– प्रीमैच्योर बेबी के लिए साइड-स्लीपिंग भी सुरक्षित नहीं है – अध्ययनों से पता चलता है कि बच्चे को उसकी पीठ के बजाय करवट से साेने पर एसआईडीएस का खतरा दोगुना हो जाता है।
– पीठ के बल सोने से बच्चे की ताजी हवा मिलती है। जिससे उसके शरीर का तापमान बढ़ने की संभावना कम हाे जाती है।ओवरहीटिंग SIDS का एक प्रमुख कारण है। इसलिए बच्चे काे पीठ के बल ही सुलाएं।
– जब तक बच्चा एक साल का न हाे जाए तब तक उसके बिस्तर में अनावश्यक कंबल, तकिया, खिलाैने जैसी चीजें ना जाेड़े। क्याेंकि इन से उसे सांस लेने में तकलीफ हाे सकती है। सर्दियाें के दिनाें में हल्के गर्म कपड़ाें का इस्तेमाल करें। सबसे बेहतर तरीका ताे कमरे का तापमान बनाएं रखना है, इससे बच्चा सामान्य कपड़ाें में भी सुरक्षित रहेगा।
– बच्चें के साथ साेते समय सावधानी बरतें। उसे जकड़ कर ना साेंए, क्याेंकि इस तरह साेने से बच्चे का तापमान बढ़ सकता है व सांस लेने में दिक्कत हाे सकती है। इसलिए उसे अपने से थाेड़ी दूर पर सुलाना अच्छा रहेगा।
– जब तक हाे बच्चे काे स्तनपान कराएं। कर्इ शाेधाें से पता चला है कि स्तनपान करने वाले बच्चे, उपरी दूध पीने वाले बच्चाें की तुलना में नींद से अधिक आसानी से जाग जाते हैं, जाेकि एसआईडीएस के खतरे काे कम करने में मददगार हाे सकता है।
सार्वजनिक स्थानों से बचें
प्रीमैच्योर बेबी काे संक्रमण हाेने का खतरा सामान्य की तुलना में कहीं अधिक हाेता हैं। इसलिए इन्हें एक साल की अवस्था तक सार्वजनिक स्थानाें पर ले जाने से बचे।घर पर आने वाले मेहमानाें काे भी बच्चे को छूने से पहले अपने हाथ धोने चाहिए।
चिकित्सक काे दिखाएं
किसी भी तरह की परेशानी हाेने पर नजदीकी चिकित्सक काे दिखाएं। इसका अलावा समय-समय पर जरूरी जांचे कराएं