लखनऊ। हमारे देश में अस्थमा तेजी से पांव पसार रही है। अस्थमा को खत्म करने के लिए समाज को आगे आना होगा। यही नहीं अस्थमा को लेकर समाज में फैली हुई भ्रांतियों को भी खत्म करना है। अस्थमा की शुरुवात किसी उम्र से नहीं होती बल्कि अस्थमा की शुरुआत बचपन से होती है।
ऑपरेशन से होने वाले शिशुओं को अस्थमा होने का खतरा अधिक होता है। उक्त बातें केजीएमयू के पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने विश्व अस्थमा दिवस पर शताब्दी फेस 2 में आयोजित प्रसवार्ता में कही।
इनहेलर आखिरी नहीं पहली दवा है
यहां प्रेसवार्ता में चीफ गेस्ट के रूप में आए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि इस बीमारी से घबराने की जरूरत नहीं है। इससे पीडि़त व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। यह एक तरह का क्रॉनिक बीमारी है। इसका इलाज लम्बे समय तक चलता है। अक्सर इससे पीडि़त ऐसा करते हैं कि ठीक होते ही दवा छोड़ देते हैं। यह दवा इनहेलर है, लोग सोचते हैं कि यह दवा आखिरी दवा है लेकिन ऐसा नहीं है यह दवा पहली दवा है।
इन बच्चों को अस्थमा का खतरा ज्यादा
डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि समय से पहले ऑपरेशन से प्री-मेच्योर शिशु को जन्म देती हैं। प्री-मेच्योर शिशु में फेफड़े का विकास पूरा नहीं हो पाता है। फेफड़े के विकास के लिए डॉक्टर स्टेराइड देते हैं, जिससे शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचता है। इसलिए समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों को अस्थमा का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
इलाज संभव है
डॉक्टर राजे्रद्र प्रसाद ने कहा कि अस्थमा का दवाओं, इंजेक्शन और इनहेलर से इलाज संभव है। उन्होंने बताया कि इनहेलर अस्थमा में बेहद कारगर है। क्योंकि दवाएं खून के जरिए पूरे शरीर में फैलती हैं। फेफड़े तक दवा पहुंचने में कम से कम आधे घंटे का समय लगता है। इसका साइडइफेक्ट भी कम है। उन्होंने कहा कि अक्टूबर और मार्च अप्रैल का महीना अस्थमा के मरीजों के लिए दिक्कतें पैदा करता है क्योंकि मौसम में परिवर्तन होता है।